Saturday 6 August 2016

कविता. ८४८. अकेले रह जायेंगे।

                                              अकेले रह जायेंगे।
अकेले रह जायेंगे हम यह हमने कई बार सुना है पर हर बार अपने मेहनत के बाद हमने दोस्तों मे से अपना दोस्त चुना  है सच्ची राह पर साथी तो मिल ही जाते है।
अकेले चलते हुए ही तो हम जीवन मे तलाश कर पाते है जिसे हम हर बार समझ लेना चाहते है कि हम क्या चाहते है उसे समझकर ही तो हम जीवन मे आगे बढते जाना चाहते है।
अकेले चलते रहने से ही तो हम जीवन कि सोच को समझकर आगे बढते जाते है पर हर बार अलग तरह के मकसद को हम आगे बढाते चले जाते है उम्मीदे साथ लाते है।
अकेले आगे बढते जाने कि जरुरत हर मोड पर अक्सर होती है जो हमे आगे लेकर हर बार चलती रहती है जो जीवन को नई साँसे देकर आगे चलती जाती है जीवन दे जाती है।
अकेले आगे चलते जाने कि सोच से ही कभी कभी उम्मीदे जीवन मे मिल पाती है जो हमे किनारे हर बार बदलकर रख देती है नई रफ्तार को देकर चलते जाते है।
अकेले आगे चलते रहने से ही तो जीवन को हर बार कोई नई सुबह मिल जाती है अकेले हम ज्यादा देर तक नही रह पाते है हम दिशाओं मे कुछ अलगसी उम्मीदे खोज पाते है।
अकेले आगे  बढते तो हम जाते है पर अकेलेपन का एहसास उस जुनून के संग भूलाकर हम जीवन को अलग तरीके से हमेशा जी लेना हर बार चाहते रहते है।
अकेले रह जायेंगे यह तो डराने कि सिर्फ बात होती है सच्चाई के राह पर हमारी सच्चे दोस्तों से मुलाकात होती रहती है जो जीवन को हर मौके पर रोशन करके आगे जाती है।
अकेले राह पर चलना ही तो कभी कभी सही शुरुआत होती है राहों पर तो उलझन आती रहती है जो जीवन कि कहानी को बदलाव देकर आगे बढती रहती है।
अकेले आगे बढते रहने कि जरुरत हर बार होती है क्योंकि अकेलेपन मे ही तो दुनिया कि शुरुआत छुपी होती है उसमे ही तो जीवन के एहसास छुपे हुए होते है उनमे ही प्यास छुपी होती है।

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