Thursday 7 July 2016

कविता. ७८९. बारीश को समझकर।

                                                बारीश को समझकर।
बारीश को समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत हर पल होती है जब वह आती है जीवन कि कहानी बदलती जाती है दिशाए बदलकर आगे बढती जाती है।
बारीश के अंदर एहसास कि कहानी बदलकर साँसे दे जाती है जो जीवन को नजारे देकर आगे लेकर हर मोड पर खुशियाँ देकर आगे बढती जाती है।
बारीश कि बूँदे जो जीवन मे जरुरी नजर आती है वह तब आगे ले जाती है जब वह दुनिया को अलग तरह का मकसद देकर आगे बढती चली जाती है।
बारीश के एहसास से दुनिया कि सोच हर पल बदलती जाती है जीवन को आगे बढते रहने कि जरुरत उम्मीदे हर पल दे जाती है।
बारीश को अगर हम समझ नही लेते है तो उसमे दुनिया कुछ और ही नजर आती है जीवन कि सच्चाई देकर हर पल आगे बढती जाती है।
बारीश के अंदर अहमियत को समझ लेने कि जरुरत हर पल कुछ खास एहसास देकर जाती है जो जीवन कि ताकद बनकर हर पल आगे ले आती है।
बारीश के पानी से ही तो दुनिया कि नई रफ्तार शुरु हो जाती है जो जीवन को समझकर आगे बढती जाती है जो दिशाए बदलती जाती है।
बारीश के पानी के एहसास को समझकर आगे बढती जाती है क्योंकि पानी मे ही जिन्दगी तो रहती है उसमे उम्मीदे नजर आती है।
बारीश कि बाते ही तो जीवन कि धारा को बदलकर जाती है जो जीवन को अलग तरह का मकसद देकर जाती है एहसास बदलकर जाती है।
बारीश के एहसास मे जीवन कि भाषा है जो जीवन को अलग रंग देकर आगे बढती जाती है जो जीवन के एहसास को अलग सुबह दे जाती है।

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