Wednesday 27 July 2016

कविता. ८२९. दुनिया को खुद से समझ लेना।

                                       दुनिया को खुद से समझ लेना।
सारी दुनिया को खुद ही समझ ले हम यह बात नही होती है जो हमे सिखाती है जीवन कि वह सौगाद नही होती है बस अपने ही खयालों से बात नही बनती है।
सारी दुनिया को दो पन्नों मे समझा दे ऐसी किताबमे नही होती है कई पन्नों मे उलझ चुकी है यह दुनिया बडी मुश्किल से ही उसकी बात समझमे आती है उसे समझ लेना चीज आसान नही होती है।
सारी दुनिया को परख लेते है पर फिर भी जीवन कि सुबह नही मिलती है जिसे जीवन मे जी लेते है वह दिशा नही दिखती है क्योंकि वह दिशा नही बनती है।
सारी दुनिया को समझ लेने के लिए कई चीजों कि मदद लेनी पडती है पर कभी कभी वह मदद इतनी मुश्किल लगती है कि दुनिया को समझ लेने कि जरुरत नही लगती है।
सारी दुनिया को खुद से समझ लेना ही अहम लगता है छोटी छोटी चीजे जीवन मे आसान नही लगती है क्योंकि दुनिया समझ नही आती है।
सारी दुनिया को एक राह पर ही समझ लेना बात मुमकिन नही लगती है कई राहों से गुजरे बिना हमारी दुनिया नही बन पाती है जिनमे मुश्किल बसी रहती है।
सारी दुनिया को खुद कि ताकद से समझ लेते है पर छोटी चीजों के साथ कई चीजे समझकर भी दुनिया नही समझ आती है उसकी खुशियाँ नही समझ आती है।
सारी दुनिया को खुद से समझ लेने कि कोशिश तो हर पल करते रहते है पर सिर्फ एक मोड पर रहने से हमे हमारी दुनिया सही तरीके से कई बार समझ नही आती है।
सारी दुनिया को कई रंगों मे बाँटती हुई कहानी बनती है उसे समझ लेने कि जरुरत हर कहानी से मिलती है उस कहानी को समझ लिये बिना दुनिया नही मिलती है।
सारी दुनिया को कई किस्सों मे हमने पढा है पर उस एक किस्से को समझ लिए दुनिया नही समझ पाती है यह कहानी दुनिया मे कई किस्सों कि होती है।

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