Friday 1 July 2016

कविता. ७७७. सूरज कि रोशनी।

                                            सूरज कि रोशनी।
सूरज कि रोशनी को समझकर ही तो हर बार आगे बढते जाते है जिसे समझकर हर बार जीवन कि अलग दिशाए पाते है।
उस रोशनी को जिसे हम समझ लेना चाहते है उस रोशनी कि ताकद हम परख लेना चाहते है जिसे हम आगे ले जाते रहते है।
सूरज को परखकर और समझकर आगे चलते रहना हम चाहते है जीवन कि धारा को परखकर आगे बढते रहना चाहते है।
सूरज कि रोशनी हर बार जीवन को एहसास अलग दे जाती है जिनमे दुनिया हर बार कोई गीत नयासा सुनाती है।
हमे जीवन मे कई किसम के किनारे दिखते जाते है जिन्हे समझ लेना हर पल हर मोड पर हम अक्सर चाहते रहते है।
जो रोशनी हमे छूँकर आगे बढती है उसके अंदर जीवन कि कहानी हर बार जिन्दा रहती है जिसमे हम हर पल ताकद पाना चाहते है।
किसी ताकद को या फिर किसी खयाल को हम बार बार समझ लेना चाहते है उसे अलग एहसास से अलग तरीके से जीना चाहते है।
जब जब हम रोशनी के ओर देखते जाते है उनके अंदर ही हम अपनी दुनिया पाते है जिसे हम समझ लेना चाहते है हम जीवन कि हर बात को परख लेना चाहते है।
रोशनी ही तो दुनिया कि सच्ची ताकद लगती है हम दुनिया को हर बार परखकर समझ लेने कि दिशाए हर पल हम उजागर करना चाहते है।
सूरज को परखकर हम उसकी रोशनी कि ताकद को हर जीवन मे जीना चाहते है उस ताकद से ही तो हम दुनिया को देख पाते है।

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