Sunday 26 June 2016

कविता ७६७. जीवन कि चमक

                                               जीवन कि चमक
हिरे कि चमक से ज्यादा किसी आँखों कि चमक लगती है उस पल ही तो जिन्दगी कि समझ मिलती है जो दुनिया को सुबह देती है
आँखों को परखकर ही तो दुनिया कि कहानी दिखती है जिसमे जीवन कि साँसे बनती है और रुकती है उम्मीदे दिखती है
जब आँख के एहसास पर ही हमारी दुनिया चलती है रुकती है तभी तो इन्सान मे इन्सानियत दिखती है जो सोच बदलकर रखती है
मन से ज्यादा जब कोई बात नही लगती है तभी तो जीवन कि दिशाए बदलती जाती है मन कि ताकद जिन्दा रहती है
जो सोच मन को साँसे दे वह आँखों से मिलती है जिसके अंदर दुनिया कि कोई अलग कहानी हर पल सुहानी लगती है
हिरे कि चमक से ज्यादा दुनिया मे किसी के आँसू कि खुद को किंमत लगती है तब नसीहत देने कि जगह खुदकी दुनिया ही बदलती है
जो हिरे कि चमक हमे अलग एहसास देकर आगे ले जाती है उसे परख लेने पर दुनिया कुछ अधूरीसी लगती है उसे दिखाने कि जरुरत हर पल होती है
जीवन मे हर पल अलग सोच अलग एहसास आँखे ही देती है जो दुनिया को सच अक्सर बता देती है पर उनका सबूत नही होता है
इसलिए तो आँखों से ज्यादा दुनिया को हिरों कि अहमियत लगती है जीवन मे आँखे इन्सान को उम्मीद तो देती है पर सबूत नही दे पाती है
पर आखिर मे जीवन मे सबूत से ज्यादा अहम उम्मीद ही होती है जो जीवन कि हर सोच को आगे लेकर बढती चली जाती है

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