Wednesday 22 June 2016

कविता ७५८. धरती सिखाती है

                                            धरती सिखाती है
एक बात जो धरती सिखाती है जाने क्यूँ  वह हमे खुशियाँ देकर आगे बढती चली जाती है जिसमे जीवन कि खुशियाँ शामिल होती है
जब धरती हमे कोई मकसद देकर आगे बढती चली जाती है जीवन कि राहे बदलकर दिशाए बदलती जाती है नई सोच आती है
पर हमे तो धरती बस वही नजर आती है पर उस से सच्चाई कहाँ बदल पाती है जो जीवन को कई मतलब देकर आगे जाती है
धरती ही तो जीवन कि सही बात बताकर जाती है वह बताती है जिन्दगी वही सोच देकर आगे जाती है जो हमे ताकद देकर जाती है
धरती मे ही दुनिया को बनाती जाती है उसके अंदर साँस रखकर हर घडी चुपचाप घुमती जाती है पर किसीको वह बात समझ न आती है
जीवन को समझ लेना बडी मुश्किल बात हर पल नजर आती है क्योंकि धरती कुछ अलग ही गीत सुनाती है जिसका अंदाज जुदा होता है
जीवन मे हर बात को समझ लेने कि जरुरत हर बार होती है जो जीवन को बदलकर जाती है नये बात को समझाकर आगे बढती जाती है
धरती मे ही कई बाते हर पल छुपी होती है जिन्हे समझकर दुनिया हर पल आगे बढती रहती है पर कई बाते हमारे लिए अक्सर राज ही रह जाती है
धरती जो हर पल मेहनत करती रहती है कितनी आसानी से वह जीवन मे अलग एहसास लेकर चलती रहती है वह कई बार आगे बढने का एहसास भी नही देती है
धरती को समझ लेने कि जरुरत हर पल हर मोड पर होती है क्योंकि धरती तो एक जगह पर रुकती नही है पर उसके घुमने के एहसास से दुनिया बचती है

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