Saturday 25 June 2016

कविता ७६५. किसी लब्ज को समझकर

                                            किसी लब्ज को समझकर
किसी लब्ज को समझकर जीवन तो बदलता जाता है जिन्हे परखकर ही तो जीवन मे एहसास अलग आता है दिशाए बदलकर आगे जाता है
जीवन का लब्जों से ही तो शृंगार नजर आता है जो जीवन कि दिशाए हर पल बदलता जाता है जीवन को समझकर आगे बढता जाता है
लब्जों कि ताकद से ही तो जीवन का मतलब मिल पाता है जीवन मे लब्जों से ही तो आगे बढने का मौका जीवन मे मिल पाता है
जीवन ही तो वह लब्ज है जिनसे बात का समझ लेना मुमकिन नजर आता है वह हर पल हमे ताकद देकर जाता है लब्ज बदलकर जाता है
लब्ज ही तो वह ताकद होते है पर कभी कभी जीवन का एहसास अपने आप बदलता जाता है जो जीवन कि दिशाए बदलकर दुनिया दिखाता है
लब्ज ही तो जीवन मे कई जगह नई शुरुआत दे पाता है जीवन को लब्जों के जाल मे ही तो समझ लेना हर बार जरुरी नजर आता है
जीवन को अलग एहसास ही तो हर पल मकसद देकर जाता है जो जीवन को नई साँसे देकर हर मौके पर अलग सोच देकर आगे जाता है
लब्ज ही तो जीवन मे दिशाए देकर जाते है वही तो अक्सर हमे अलग मतलब का एहसास दिला देते है पर हर बार यह मुमकिन नही हो पाता है
जीवन लब्जों से ही तो घिरा हुआ नजर आता है हमे उम्मीदे देकर आगे बढने कि दुनिया देकर हर पल आगे बढता जाता है
क्योंकि लब्ज ही तो दुनिया कि ताकद बन पाता है जो हमे अलग और नये किसम कि रोशनी देकर आगे हर पल बढता जाता है

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