Monday 6 June 2016

कविता ७२७. लब्जों का एहसास

                                              लब्जों का एहसास
हर लब्ज को परखकर जीवन को समझकर आगे बढने कि जरुरत हर पल होती है पर कई बार लब्जों को बिना परखे ही दुनिया आगे बढती है
लब्ज को समझकर जीवन को परख लेने कि जरुरत होती है जीवन कि धारा बडी खुबसूरत होती है जो दुनिया को अलग रंग देकर चलती है
जीवन मे लब्जों को समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत होती है जिससे दुनिया बडी खुबसूरत बन जाती है जिसे समझकर चलने कि जरुरत होती है
लब्जों को समझकर दुनिया जीवन को समझ देती है जिसे परख लेने कि हर जरुरत होती है जो जीवन को खुबसूरत करती है उम्मीदे दे जाती है
लब्जों मे ही तो दुनिया कि एक अलगसी चाहत होती है जो दुनिया को खुबसूरत बनाकर हर मोड पर चलती है जिसमे अलग कि समझ होती है
लब्ज को समझ लेने कि दुनिया को सच्ची जरुरत होती है जो जीवन को हर मोड पर खुबसूरत बना देती है वही जीवन कि ताकद होती है
लब्ज को समझकर जीवन कि अलग सोच जो आगे चलती है उसे समझ लेने कि दुनिया मे कभी जरुरत होती है पर कभी कभी कोई सोच भुलाना बात बेहतर होती है
लब्ज को समझकर दुनिया के चाहत को परख लेने कि जरुरत होती है तो कभी जीवन को नई उम्मीदे देकर आगे चलती रहती है
लब्ज को समझकर आगे जाने कि जरुरत होती है पर कभी कभी लब्जों को समझे बिना ही दुनिया खुबसूरत होती है उसे परख लेने कि जरुरत होती है
तो जीवन कि कहानी अलग अलग होती है कभी लब्जों कि बात है तो कभी बिना लब्जों कि कहानी ही जीवन मे आगे बढती रहती है

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