Wednesday 22 June 2016

कविता ७५९. बूँदों कि मैफिल

                                             बूँदों कि मैफिल
बूँदों मे संगीत अलगसा सुनने को मिलता है जो जीवन कि कोई अलग कहानी कहता रहता है जीवन को साँसे हर पल देकर चलता है
बूँदों कि जो सरगम हर बार सुहानी लगती है उसे सुनने कि चाहत को जीवन कि कहानी अलग सोच से कहती रहती है
किसी बिजली कि आवाज से एक बात रुहानी लगती है सीधे साधे रास्तों पर भी मन मे कोई डरावनी कहानी बनती है जिसे सोचकर मन बहलता है
बचपन कि कहानी जिन्दा होती है कागज कि जो नाव उस वक्त डुब गई उस पल पानी मे फिर से बहती हुई दिखती है
जब हम संगीत सुने बूँदों का तो जीवन कि कहानी बदलती रहती है जिसे समझकर आगे बढने कि कहानी बनती है
बूँद जो हम को साँसे देकर आगे बढती है वह जीवन कि अलग कहानी समझाकर चलती है जो बूँदों कि रवानी दिखाकर चलती है
बूँद जिस बात को समझकर आगे बढती चली जाती है उस बूँद के भीतर ठंडक का एहसास देकर जीवन मे एक अलग निशानी बनती है
बारीश तो हर बार वही है पर फिर भी सुहानी लगती है माँ कि गोद मे गुजरे बचपन से आगे बढते हर मोड पर हमारे साँसों को हर बार सुनती है
जब बादल दिखते है तो वह बात पुरानी नही लगती है हर बार उनके संग कोई अलग कहानी बनती दिखती है जीवन कि सोच बनती है
बादल बिजली बूँदों संग जीवन कि अलग मैफिल बनती है और संगीत के मैफिल कि तरह यह मैफिल हर बार अलगसी दिखती है

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