Saturday 11 June 2016

कविता ७३७. खयाल को समझना

                                                              खयाल को समझना
किसी के खयाल से अगर मन मुस्कुराये तो उसे रोकने कि जीवन मे हम जरुरत क्यूँ पाये कभी किसी खयाल को कुछ इस तरह से उडने दो कि जीवन मे उसे हम समझ न पाये
किसी सोच को इस तरह से परख लेने कि जीवन मे जरुरत है पर कभी कभी कोई सोच जीवन मे आजादी कि लहेर बन के बहती है जिसे समझे बिना वह दुनिया मे चलती है
सोच को एहसास मे बदल देने कि जरुरत जीवन को अक्सर होती है जिसमे हमारी दुनिया हर पल हर घडी अक्सर जिन्दा रहती है मन को चोट देती है
जिस खयाल मे आजादी कि आवाज सुनाई पडती है उस पर उडने कि जरुरत हम बिना सोचे ही मेहसूस करते है जिसे हम धीरे धीरे समझते है
हर खयाल को लब्जों कि अलग जुबान मिलती है जीवन मे हर पल आगे बढते रहने कि जीवन मे अलग ही जबान नजर आती है
हम हर पल जो समझ ना पाये वह अलग जवाब होती है पर कोई याद ऐसी होती है जो हर खयाल को तोडकर हमारी दुनिया बदल देती है
हर बारी जीवन मे किसी खयाल को समझ लेने कि हर पल एक अलग जरुरत होती है जो जीवन कि कहानी अलग ढंग से अक्सर कहती रहती है
किसी सोच को समझकर जीवन को किरण तो तभी मिलती रहती है जब जीवन कि कहानी हर पल नई उम्मीदे देकर चलती रहती है
किसी खयाल से जीवन कि सोच हर बार आगे बढती है हमे जीवन को नई शुरुआत दे ऐसा एहसास जीवन मे करके जाती है
उस खयाल को परखकर आगे बढने कि जरुरत हर बार होती है उस खयाल को समझ में ही तो हमारी दुनिया हर पल जिन्दा रहती है 

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