Friday 17 June 2016

कविता ७४९. सच्ची चमक

                                             सच्ची चमक
हिरे कि चमक को समझकर आगे बढते रहने कि हर पल आदत तो होती है पर सवाल तो यह होता है किस हिरे कि चमक हमारी किस्मत होती है
जीवन को समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत होती है हिरा सिर्फ एक पत्थर को ना समझे तो इन्सान कि समझ मेहसूस होती है
जीवन कि हर धारा अपने रंग बदलती है जिसे समझ लेते है तो जीवन कि साँसे भी एक रुदुमसी होती है जो जीवन को मकसद देती है
हर गीत को अगर समझ लेते है तो जीवन कि धारा बहती है जिसे बहते रहने से ही तो दुनिया कि किस्मत होती है नई सुबह देती है
सुंदरता एक एहसास है जिसमे दुनिया नई सुबह देती है जिसमे हमे जीवन कि कहानी हर पल रोशनी देती जाती है मकसद कि कहानी बनती है
हर चमक को समझ लेते है पर हमे जीवन कि निशानी कुछ अलग ही हर बार नजर आती रहती है हमारी सोच बदलकर जाती है
अगर चमक को समझ ले तो वह बाकी चीजों मे ही तो हर बार मिलती रहती है जिसे समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत हर सुबह दे जाती है
जो साँसे जिनमे हमारी दुनिया हर बार खुशियाँ देती है उसकी चमक हर कदम पर हमे अलग एहसास देकर आगे बढती जाती है दिशाए बदलती है
हम हर पल बदलते रहते है जीवन को अपनी आवाज हर बार बदलती रहने कि जरुरत होती ही है जो जीवन कि दिशाए बदलती है
चमक जो दुनिया को परखकर आगे चलते रहने कि समझ देती है सही तो उस हिरे कि चमक है जो सच्चाई का उजाला जीवन मे भर देती है

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