Wednesday 1 June 2016

कविता ७१७. भटकिसी राह

                                                 भटकिसी राह
कभी कभी कोई बात जो भुला दियी हो वह याद आती है कोई राह भटकीसी हमे पास बुलाती है हमारी साँसों को एहसास अलग दे जाती है
किसी भुली बिसरी याद भी मन को कुछ ऐसे छूँ कर जाती है जीवन कि सरगम दिशाए बदलती जाती है नये किनारे देकर आगे बढती जाती है
राह जिसे हम भुला चुके हो वह साँसे दे जाती है कोई राह जो किसी ओर भटक जाये वह एक अलगसी कहानी सुनाती है जीवन कि निशानी बदल जाती है
किसी दिशाए भटकानेवाली राह से तो अक्सर डरते है पर कभी कभी तो एक सीधी राह भी डराकर जाती है जीवन बदलकर चलती है
किसी गुम हुई राह को परख लेने कि जरुरत भी तो मन को अक्सर होती है जो खुशियाँ देकर आगे बढती जाती है क्योंकि जीवन कि राह आसान नही होती है
जो बदलती जाती है वह राह जीवन को परेशान नही कर पाती है वह उम्मीदे हर बार हर पल आगे तो लेकर ही जीवन मे चलती जाती है
किसी भटकती राह से हमे मुश्किल नही होती है क्योंकि उस राह कि सोच हर पल बदलती चली जाती है दिशाए बदल देती है
किसी कोने मे छुपी हुई राह अगर मन मे हो तो बिना उम्मीद नही होती है क्योंकि मन के हर कोने मे हर पल उम्मीद छुपी रहती है
राह को समझकर जीवन कि दिशाए बदलती रहती है जिसकी बजह से जीवन कि धारा हर पल सीधी नही चलती है किनारे पर बदलती रहती है
जब जीवन राह बदलता जाये तो जीवन को दिशाए बदलने कि जरुरत नही होती है हर कोने कि दिशाए अहम होती है कोई दिशा कम नही होती है 

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