Monday 30 May 2016

कविता ७१३. डर को समझ लेना

                                                              डर को समझ लेना
अगर कोई ना सुनना चाहे तो भी हम सुनाये ऐसे हालात नही है पर कोई चुपकर जाये और डराए तो चुप रह जाये ऐसे डरपोक भी नही है हम
जब जीवन कोई संगीत सुनाये उसे प्यार से सुन लेते है हम पर कोई मजबूर करे सुनने को तो उस धून को समझना नही चाहते है क्योंकि डर कि हुकूमत नही मानते है
हम तो उस गीत को समझते है जिसमे मुस्कान जीवन की हो उसे समझकर आगे बढने की जरुरत हर बार होती है जो जीवन के असर को समझ लेते है हम
जीवन के अंदर हम उम्मीदे हर किनारे मे कोई बात अलग असर कर जाती है जीवन मे हर बार कोई अलग तरीके से जीवन मे अलग कर जाते है हम
जीवन मे सारी चीजे अलग अलग असर कर जाती है जीवन को परख लेने की जरुरत होती है जीवन मे कोई असर तो अक्सर होता है देखा हमने
जीवन के कई गीत खुशियाँ देते है डर को समझकर ही तो आगे चलना जरुरी होती है जीवन को परख लेना अहम होता है हमे
डर के अंदर जीवन को समझकर आगे चलना चाहते है जीवन के कई चीजों को समझ लेना जरुरी होता है तो कुछ समझ लेना जरुरी होता है हमे
डर के आगे जीवन को अलगसा एहसास मिल जाता है जीवन मे डर को समझ लेना जरुरी होता है जीवन मे बहोत सारी खुशियाँ हासिल कर लेते है हम
डर को समझ लेना जीवन की जरुरत होती है जीवन को आगे बढना बडा अहम नजर आता है जीवन को समझ लेना डर के बाद हासिल होता है हमे
डर के अंदर जीवन को खो देने की नई सोच होती है हर पल जीवन को डर से आगे बढना जरुरी होता है नई सोच उसके आगे ही मिलती है हमे 

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