Monday 23 May 2016

कविता ६९९. रात के अँधेरे मे

                                             रात के अँधेरे मे
रातों के अँधेरे मे बिजली जब जाती है छोटीसी मोमबत्ती कि रोशनी बढी प्यारी नजर आती है तभी तो सिर्फ आसमान के ओर नजर जाती है
तभी तो जीवन कि कहानी अलग एहसास देकर आगे बढ जाती है उस सोच को जिसे हम परख चुके है वह किनारे बदल जाती है
हमे अँधेरे मे ही तो रोशनी कि लकिरे नजर आती है जो जीवन को अलगसा एहसास देकर आगे बढ जाती है जीवन दे जाती है
अँधेरे के अंदर ही तो जीवन कि अलग कहानी समझ मे आती है जो हमे हर पल कोई ना कोई अलग तरह कि सोच देकर जाती है
हमे हर बार हर पल अँधेरे से लढने कि जरुरत अक्सर लगती है जो हमारी दुनिया मे मुसीबत नजर आती है पर अगर उस आसमान को देखे तो खुबसूरती अँधेरे मे नजर आती है
जो दुनिया के हर किनारे कि खुशबू दिखाकर आगे बढती चली जाती है दुनिया को कई दिशाए देकर आगे चलती जाती है
जो अँधेरे मे दिखते है वह तारे रोशनी कहाँ दिखा पाती है वह हर पल अलग एहसास के संग दुनिया कि कई खुशियाँ दिखा देती है
हर पल अँधेरे मे कई चीजों को समझकर आगे बढती जाती है वह किस्मत कि बात है की वह कभी सही या कभी गलत निकल जाती है
गम और खुशी कि तरह जीवन मे दोनों मतलब कि बाते हर बार रहती ही है जिन्हे हर पल जीवन मे समझ लेने कि जरुरत होती है
अँधेरे जितनी ही जीवन मे रोशनी जरुरी होती है पर अँधेरे से नफरत यह बात सही नही होती है सोचो क्या होगा उस जीवन का जिसमे रात ही नही होती है  ँ

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