Monday 16 May 2016

कविता ६८४. हर हिरे के अंदर

                                                 हर हिरे के अंदर
हर हिरे के अंदर अलग रोशनी चमकती है जिसे समझकर ही तो दुनिया हमे आगे लेकर चलती है जिसकी चमक कुछ अलग ही होती है
क्योंकि उस हिरे से रोशनी बिखरती है पर वह असली हिरे कि समझ जिन्हे होती है उन्हे परख लेने कि जरुरत हर बार होती है
हिरा तो वही होता है जिसके अंदर अलग चमक होती है उसे गहने से ज्यादा इन्सान कि अच्छाई कि समझ होती है जो जीवन कि ताकद बनती है
जीवन के अंदर कहानी तो लोगों कि सोच से बनती है वह हर पल सौगाद बनकर जीवन के अलग रंग दिखाकर आगे जाती है
हिरों से ज्यादा इन्सान को समझ लेने कि जीवन को जरुरत होती है जो जीवन को कई मोडों पर सीखाती है जीवन कि कहानी एहसास अलग दे जाती है
हिरे से ज्यादा सही सोच असर कर जाती है क्योंकि हिरे कि चमक कुछ दिनों मे निकल जाती है जीवन कि कहानी बदल जाती है
हिरों से ज्यादा मन कि ताकद हर बार अहम होती है जो जीवन कि सोच बदलकर रख देती है जिसे समझ लेने कि जरुरत होती है
जो हिरों मे ही खूश हो जाये उसकी दुनिया कहाँ बडी बदकिस्मत होती है जो उनसे आगे बढ जाये उसकी दुनिया जन्नत होती है
मन के हिरों मे ही तो दुनिया कि सच्ची ताकद छुपी होती है जो हमे आगे लेकर हर बार चलती है मन कि ताकद ही सही उम्मीद बनती है
मन कि समझ दुनिया कि खुशियाँ चुनने मे ही होती है तो हिरों को तो सब चाहते है पर जो इन्सान को चाहे उसमे दुनिया को सही रोशनी मिल पाती है

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