Sunday 8 May 2016

कविता ६६९. हर जगह कि कहानी

                                       हर जगह कि कहानी
जब परबतों से गुजरे उनकी कहानी हर बार सुनती हूँ उनसे मन पसंद किस्से चुनती हूँ क्योंकि जीवन मे समुंदर कि कहानी परबतों मे सुना नही करते है
जिस जगह पर हम खडे है वहाँ हम उसकी कहानी ही तो सुना करते है उसके नतीजे हर दम सहा करते है नतीजे हम हर मोड पर खुशियाँ ही पाते है
क्योंकि खुशियाँ तो बस उस मन को समझकर हमे मिलती है जो अपने जहान मे खुशियाँ ढूँढ लिया करते है मन को नया एहसास दिया करते है
अलग अलग जहान मे खुशियाँ उनकी खास और गम भी अलग अलग हुआ करते है जो जीवन पर कुछ अलग ही असर किया करते है
हर जगह कि कहानी और आदत अलग हुआ करती है जिनके असर से जीवन को हम अलग तरीके से हर दम सीख लेते है
हर जगह कि अपनी रीत हर बार उसे समझ लेना ही दुनिया कि सही रीत होती है जो जीवन को हर बार हर मौके पर बदलकर रख देती है
क्योंकि जगह जगह के अफसाने तो बदलते है पर उनसे हर दिवाने हर बार हुआ करते है तो हर जगह ही तो जीवन कि शुरुआत होती है
जो जगह का रुप होता है वही जीवन कि सबसे बडी जरुरत होती है जिस जगह मे रहो उसमे ही तो जीवन कि खुशियाँ हर बार दिखती है
हर जगह कि आदत होती है जो उसे समझकर चाहे तो ही दुनिया कि नई आदत दिखती है जो जीवन को अलग तरीके कि आदत देकर जाती है
जगह को समझ लेना ही जीवन कि सच्ची ताकद होती है क्योंकि जो एक जगह रहकर दूसरी जगह के सपने देखे उसकी दुनिया तो बस मुसीबत ही होती है
क्योंकि कोई एक जगह खास नही पूरी दुनिया खुबसूरत होती है तो जो किसी जगह कि खुबी को ना जाने वह नजर बदकिस्मत होती है

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