Sunday 1 May 2016

कविता ६५५. तसबीर को समझ लेना

                                           तसबीर को समझ लेना
किसी तसबीर को देखते रहने कि मन को अजबसी चाहत होती है उस तसबीर मे दुनिया की खुशियाँ सीमट जाती है उनमे जीवन कि शुरुआत होती है
जीवन के अंदर एहसास को समझ लेने कि ताकद मन मे तो होती है तसबीर को समझकर जीवन कि कहानी हर बार बनती है जीवन कि निशानी ताकद देती रहती है
तसबीर को समझ लेने कि जरुरत कुछ अलग ही होती है जो हर पल के अंदर दुनिया कि खुशियाँ दिखा के चलती है हमारी सोच बदलती है
कई तसबीरे जीवन कि कई मोड दिखाती है हमे तरह तरह के रंग दिखाकर हमारी दुनिया हर पल मे बदलती है दिशाए बदलकर जाती है
किसी तसबीर मे आनेवाले कल कि तो किसी तसबीर मे गुजरे कल कि उम्मीदे दिखती है तसबीरों के अंदर ही हमारी उम्मीदे रहती है
कितनी खूब हमे वह तसबीर लगती है जो जीवन कि कई दिशाए समझाकर चलती है तसबीर को परखकर ही तो दुनिया दिखती है
तसबीर को समझकर ही तो दुनिया कि खुशियाँ कभी कभी याद आती है जिन्हे पाने कि चाहत मे दुनिया आगे बढती है जो जीवन को परखकर आगे चलती है
तसबीर को समझकर जीवन को आगे ले जाने कि जरुरत हर पल होती ही है ताकद तसबीर दे जाती है हर मौके मे जीवन को नई कहानी दे जाती है
तसबीर को समझ लेने कि हमे हर मोड पर जरुरत होती है क्योंकि तसबीर ही तो हमे एहसासों कि पूँजी देती है रोशनी से ही हर पल उम्मीदे देती है
तसबीर को समझकर ही दुनिया कि कहानी बनती है तो तसबीर को ही समझ लेने कि दुनिया को नही पर कभी कभी हमारे दिल को बडी जरुरत होती है

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