Saturday 9 April 2016

कविता ६१०. किनारों पर रहना

                                              किनारों पर रहना
हर किनारे पर हम अलग सोच हर बार लेकर चलते है क्योंकि किनारे उस सोच से ही बनते है किनारों पर अलग एहसास हर बार रखते है
किनारे पर दुनिया की सुबह श्याम गुजरते है उन्हे समझ लेने कि हर पल जरुरत है क्योंकि किनारे पर ही तो दुनिया बसती है जिन्दा हो पाती है
किनारों पर जीवन कि हकिकत तो कुछ अलग होती है पर तूफानों को भी तो किनारों को तोड कर जाने कि आदत होती है
किनारे पर अलग सोच कि जरुरत तो है पर साथ मे किनारों को तूफानों से बचने कि जरुरत होती है जो दुनिया को तोड कर रख देने कि ताकद रखती है
किनारों को ही तो जीवन मे आगे जाने कि जरुरत होती है क्योंकि किनारे पर ही हमारी दुनिया बसती है खुशियाँ रहती है
पर किनारों पे बसी दुनिया भी अक्सर दिशाए बदलकर चलती है जीवन को अलग उम्मीदसी देती है तूफानों से लढने कि ताकद दे जाती है
किनारों पर ही तो जीवन कि अलग कहानी बनती है जिसे समझ लेने कि दुनिया को जरुरत होती है जिससे ही दुनिया खुबसूरत होती है
किनारों को जिन्दा रखने कि दुनिया मे अक्सर जरुरत होती है जिन्हे बिना परखे दुनिया कहाँ मतलब दे पाती है कहाँ आगे ले जा सकती है
किनारों को ही तो जीवन मे दुनिया आगे ले जा सकती है किनारों पर ही तो हमारी दुनिया बसती है हमे खुशियाँ मिल सकती है
पर उन खुशियों के लिए दोनों चीजों को परख लेने कि हमे जरुरत होती है कभी किनारे के हालातों से लढना तो कभी तूफानों से लढना हमारी किस्मत होती है 

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