Wednesday 6 April 2016

कविता ६०४. पानी कि प्यास

                                                       पानी कि प्यास
नदीयाँ को छू कर जब जीवन आगे जाता है जिसे समझकर हमे नया किनारा मिल पाता है नदीयाँ को समझकर एहसास को समझ लेने कि जरुरत होती है
नदीयाँ को समझकर जीवन को जीने कि अहमियत हर बार होती है नदीयाँ को जीवन समझकर जीने कि जरुरत हर बार हर मोड पर होती है
क्योंकि बिना पानी के जिन्दगी कहाँ जिन्दा हो पाती है पानी ही तो हमारी दुनिया होती है जिसके अंदर जिन्दगी अक्सर जिन्दा हो जाती है
पर कई बार बाकि बातों मे जिन्दगी कुछ ऐसे निकल जाती है जीवन कि कहानी अलग ही मतलब हर बार देकर आगे जाती है जो किनारे बदलकर हर बार जाती है
पानी ही तो जीवन कि सबसे बडी जरुरत होती है जिसमे जीवन कि सबसे अहम जरुरत होती है जो जीवन को रोशनी देकर जाती है
बाकि चीजे तो दो पल कि मेहमान होती है पानी कि जरुरत ही जीवन कि धारा होती है जिसे समझकर आगे जाने कि जरुरत हर बार होती है
क्योंकि बिना पानी कि जिन्दगी कहाँ होती है जो हमे अलग दिशा देती है अलग समझ जीवन को अहम हर मोड पर हमेशा लगती है
पर बिना बूँदों कि कहाँ जिन्दगी हो पाती है बूँद ही तो जीवन कि शुरुआत हर बार हर हाल मे होती ही है जो मकसद देकर जाती है
पानी से शुरुआत छुपी रहती है उसे खो दे तो जीवन को खो देना होता है पर जाने क्यूँ फिर भी उसकी प्यास तब तक नही मेहसूस होती जब तक वह तरसाती नही है
हमे जीवन कि तलाश तो हर पल रहती है पर जब तक हम नही तरसते है हमे उसकी तलाश कहाँ याद रहती है हमे उसे समझ लेने कि प्यास रहती है

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