Wednesday 13 April 2016

कविता ६१९. लब्जों का संगीत

                                           लब्जों का संगीत
जब लब्ज से लब्ज जुड जाते है संगीत अलगसा समझ आता है हमे संगीत कि जरुरत नही है ऐसा जब लगता है तब भी मलहम बन के वह काम आता है
जीवन को अलग किनारा देकर वह जीवन का आधार बन जाता है जब कोई गीत नही समझ पाते है हम तो भी कोई हमे बार बार समझाता है
जीवन मे हर कोने मे उसे समझ लेने को दिल चाहता है जिसके सहारे जीवन को नया सूरज मिल पाता है जो रोशनी देकर आगे जाता है
संगीत के हर सूर के अंदर अलग एहसास जिन्दा होता है जिसे परख लेना दिल अक्सर चाहता है पर जो बार बार समझाये वह सूर भी जीवन मे अलग ताकद दे जाता है
हर लब्ज से ही तो दुनिया को नया मतलब हर बार जीवन को खुशियाँ देने के लिए अहम हर मोड पर नजर आता है अलग एहसास नजर आता है
संगीत के हर धून मे ही तो जीवन को मतलब मिलता है पर कई कई पहली बार जो ना समझे उस बात का मतलब दूसरी बार समझ आता है
किसी सूर को समझ लेने के लिए बार बार सुनना जरुरी होता है जो हमे सुनाये उसी इन्सान से दोस्ती मन चाहता है क्योंकि मन तूफानों मे किनारा चाहता है
मन सही दिशाए चाहता है जो उन्हे दिखाए वही हमेशा सही लगता है जो जीवन को उम्मीदे देकर हमे आगे ले जाना चाहता है
जीवन तो वह संगीत चाहता है जिसमे वह अपनी खुशियाँ चाहता है जिन्हे समझ लेना थोडा मुश्किल नजर आता है इसलिए वही संगीत कोई दोहराता है जीवन कि दिशाए बदलकर जाता है
किसी संगीत के अंदर जीवन कि कहानी कुछ इस तरह होती है जो जीवन कि दिशाए हर पल हर मोड पर चुपके से बदलकर जाती है  ा ीी

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