Wednesday 6 April 2016

कविता ६०५. लकिरे जो ना समझ पाये

                                                लकिरे जो ना समझ पाये
किसी किनारे पर हमने अक्सर जीवन को देखा है जिसे समझकर हमने समझ ली अपने किस्मत कि हर एक रेखा है
हाथों के हथेली पर दिखती हमारे किस्मत कि अलग तरह कि रेखा है जिसे परख लेना हमने मुश्किल से सीखा है जिसमे जीवन कि उम्मीदों का लेखा जोखा है
हमे हर किनारे से समझ लेनी एक धारा होती है जो जीवन कि हर बाजी परख कर जीया करती है हर रेखा मे हमने किस्मत को देखा है
जब जीवन को समझ लेते है तो जीवन कि ताकद का बनता एक अलग ही मौका है हाथों कि लकिरे जीवन को बदल देती है
जीवन मे उन्हे समझ लेने कि जरुरत हर बार होती ही है क्योंकि जीवन कि रेखा ही तो हमे मतलब देकर आगे बढती चली जाती है
हाथों कि लकिरे जीवन को समझकर आगे ले जाने कि ताकद हर मोड पर देती है जो उम्मीदे अक्सर देकर जाती है दिशाए बदलकर आगे ले जाती है
हाथों के अंदर दुनिया को बदल देने कि ताकद हर बार लिखी हुई होती है जिसे समझ लेने कि जरुरत दुनिया को हर बार ताकद दे जाती है
हाथ को समझकर ही तो जीवन को आगे जाने कि हर बार जरुरत होती है क्योंकि जीवन की हर सोच अक्सर हमारी हथेली पर ही तो लिखी होती है
हाथों कि ताकद जो जीवन को अलग अलग किसम कि समझ देती है उस समझ को हाथों कि लकिरों मे परख लेने कि जरुरत हर बार जीवन मे होती है
पर सचाई तो यह है कि हाथों कि लकिरे पकड मे नही आती है पर उनमे क्या बुराई है क्योंकि सूरज कि रोशनी भी कहाँ पकड मे आ पाती है
उसे समझ लेने कि कोशिश आसान नही होती है पर वह जीवन कि ताकद होती है उसी तरह यह लकिरे अक्सर हर मोड पर अहम होती है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२५. किनारों को अंदाजों की।

                              किनारों को अंदाजों की। किनारों को अंदाजों की समझ एहसास दिलाती है दास्तानों के संग आशाओं की मुस्कान अरमान जगाती...