Thursday 28 April 2016

कविता ६४९. बहार और पतझड

                                            बहार और पतझड
बहारों को समझकर आगे बढते जाने कि आदत हर पल नजर आती है बहारों को समझकर आगे जाने कि ताकद भी तो दुनिया को नई पेहचान देकर जाती है
जीवन मे बहारों को समझ लेने कि जरुरत तो होती है क्योंकि बहारे भी सिर्फ खुशियाँ नही कभी कभी तो गमों कि कहानी भी सुनाती हुई नजर आती है
बहार तो वह खुशबू है जो जीवन को अलग संगीत देकर जाती है तो जीवन मे सच्ची खुशियाँ और ताकद कि पूँजी बनकर दुनिया मे रोशनी दे जाती है
बहार तो जरुरी है बिन पतझड के दुनिया भी कहाँ आगे चल पाती है बहार और पतझड दोनों ही हर बार हर पल हमारे जीवन के दो साथी है जिनसे दुनिया बन पाती है
जीवन को अगर पखर ले तो ही जीवन मे साँसे मिल पाती है हमारी दुनिया हर बार हर दिशा मे कुछ अलग नजर आती है
जो मन को मुश्किल दे उस पतझड को भी चाहने कि जरुरत हर बार हमे होती है क्योंकि ध्यान से देखे तो जीवन मे पतझड हर बार अहम नजर आती है
बहार को समझकर ही कहाँ दुनिया आगे बढ पाती है हमे पतझड को समझ लेना है क्योंकि पतझड ही अपनी जगह छोडकर नये को मौका देने कि सीख दे जाती है
पर उसी पल बहार जब पतझड मे बदलती है तो वह चुपके से बताती है जीवन मे कुछ भी आसान नही है हर बहार तो पतझड मे बदल ही जाती है
तो क्यूँ जोडे और क्यूँ तरसे हम उन चीजों के लिए जो बस कुछ पल के ही साथी है दोनों बदलते रहते है हर पल खुशियाँ दोनों मे ढूँढने कि जरुरत होती है
तो जीवन मे रंग बदलते रहे हम मौसम कि तरह जीवन को बदल लेने कि आदत होती है बहार और पतझड दोनों को जीवन मे परख लेने कि अहमियत हर पल होती है
क्योंकि जो दोनों मे हँस के जी ले उसकी दुनिया बडी खुबसूरत होती है जो हमारी गमों पर और खुशियों पर हर बार अलग अलगसा असर कर जाते है

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