Tuesday 19 April 2016

कविता ६३०. बात को कह देना

                                                   बात को कह देना
हर बात को समझाने कि जरुरत होती है कोई बाते तो हवाए ही कह जाती है बारीश कि आवाज हर बार देकर वह आगे बढती चली जाती है
हवाओं मे कई बाते हर बार छुपी रहती है जिन्हे परख लेने कि जरुरत हर बार जीवन मे होती ही है जिसे समझकर आगे जाने कि जरूरत हर बात मे होती है
हर बात को समझकर परख पेहचान लेने कि जरुरत हर बार होती है कुछ बाते ही जीवन कि सौगाद बनकर आगे लेकर जाती है
पर हर बात सीधी से कही नही जाती कुछ बाते बारीश कि तरह समझ लिया करते है पर जीवन मे तो यही मुसीबत रहती है
कब बात सही समझ लियी है उसी सवाल मे जीवन कि उलझन बस जाती है मन कि बात अक्सर मन मे ही एक शक के साथ वही रह जाती है
क्योंकि गलत साबित होने के डर से जिन्दगी मे आगे बढते हुए कदम रुक जाते है जीवन मे बडी मुश्किल बनकर बाहर निकल आते है
जीवन के कई मोडों पर जीवन के किस्से बदलते जाते है जीवन को समझकर आगे जाने कि जरुरत हर बात मे होती है जो रोशनी देती है
हर बात जीवन मे सीधी नही होती है जिसे सामने कहना आसान नही होता है पर हर बात को जीवन मे समझ लेने कि जरुरत हर बात मे होती ही है
बात के अंदर किस्से अगर हम कह जाते है तो ही जीवन को परख लेने कि जरुरत हर बार हम समझ पाते है उसे आगे लेकर जाते है
क्योंकि माना कि कभी कभी बारीश के अनदेशा लोग गलत कर जाते है पर क्या उस से लोग रुकते है बादल को ढूँढ कर हर बार कोई ना कोई अंदाजा तो जरुर करके आगे जाते है

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