जीवन मे तरसना
पानी कि बूँद जब हमे तरसाती है तभी हमे उस उप्परवाले कि याद आती है पर जाने क्यूँ गलत काम करते वक्त आती नही है
बूँदों को तरस जाती है हमारी रुह पर उसी तरह सचाई के लिए जाने क्यूँ तरसाती नही है मन मे सिर्फ अपनी फिकर तो सबको होती है
पर जाने क्यों दूसरों को चोट देते हुए अपनी फिकर होती नही है क्योंकि दुनिया मे एक बात तो होती रही है उप्परवाले से चोट वापस आती रही है
जीवन मे हर बार उम्मीदों कि जरुरत जीवन मे तो होती ही है पर दूसरों के गमों पर अपनी हस्ती नही बन पाती है जो दिशाए बदल जाती है
हमारी सोच ही तो हमारी दुनिया बनाती है पर दूसरों के गमों से हमारी प्यास बनती है हमारी खुशियाँ जीवन मे नही बन पाती है
जो जीत मे खुशियाँ मनाये उसे उप्परवाले कि नजर अक्सर समज लेती है पर जो दूसरे कि बरबादी मे खुश हो उसकी दुनिया खुशियों को तरसती है
कोई कुछ कह देता है हम से और हम बात पर चल देते है यह बात अगर दूसरे को तरसाये तो यह बात उप्परवाले को हमे तरस जाती है
तरस ही तो दुनिया कि सच्चाई तब बनती है जब वह हमे दूसरों को तरसाने के इल्जाम कि सजा मे मिलती है और उप्परवाले के नजर मे सच्चाई बन के दिखती है
क्योंकि जीवन कि दिशाए हर बार जीवन को बदल कर सामने आती है जिनमे सोच बहोत अलग नजर आती है उप्परवाले के नजर मे हमारा इन्साफ गुनाह कि शुरुआत नजर आता है
तो जीवन मे समझ लो कि जब बात सीधी होती है तो उसमे दूसरे को कोसने कि जरुरत नही होती है सच्ची जीत जिसने पायी हो उसे दूसरे को मिटाने कि जरुरत नही होती है
पानी कि बूँद जब हमे तरसाती है तभी हमे उस उप्परवाले कि याद आती है पर जाने क्यूँ गलत काम करते वक्त आती नही है
बूँदों को तरस जाती है हमारी रुह पर उसी तरह सचाई के लिए जाने क्यूँ तरसाती नही है मन मे सिर्फ अपनी फिकर तो सबको होती है
पर जाने क्यों दूसरों को चोट देते हुए अपनी फिकर होती नही है क्योंकि दुनिया मे एक बात तो होती रही है उप्परवाले से चोट वापस आती रही है
जीवन मे हर बार उम्मीदों कि जरुरत जीवन मे तो होती ही है पर दूसरों के गमों पर अपनी हस्ती नही बन पाती है जो दिशाए बदल जाती है
हमारी सोच ही तो हमारी दुनिया बनाती है पर दूसरों के गमों से हमारी प्यास बनती है हमारी खुशियाँ जीवन मे नही बन पाती है
जो जीत मे खुशियाँ मनाये उसे उप्परवाले कि नजर अक्सर समज लेती है पर जो दूसरे कि बरबादी मे खुश हो उसकी दुनिया खुशियों को तरसती है
कोई कुछ कह देता है हम से और हम बात पर चल देते है यह बात अगर दूसरे को तरसाये तो यह बात उप्परवाले को हमे तरस जाती है
तरस ही तो दुनिया कि सच्चाई तब बनती है जब वह हमे दूसरों को तरसाने के इल्जाम कि सजा मे मिलती है और उप्परवाले के नजर मे सच्चाई बन के दिखती है
क्योंकि जीवन कि दिशाए हर बार जीवन को बदल कर सामने आती है जिनमे सोच बहोत अलग नजर आती है उप्परवाले के नजर मे हमारा इन्साफ गुनाह कि शुरुआत नजर आता है
तो जीवन मे समझ लो कि जब बात सीधी होती है तो उसमे दूसरे को कोसने कि जरुरत नही होती है सच्ची जीत जिसने पायी हो उसे दूसरे को मिटाने कि जरुरत नही होती है
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