Sunday 27 March 2016

कविता ५८३. चेहरे कि झूठी पेहचान

                                               चेहरे कि झूठी पेहचान
चेहरे भी कई बार झूठी बाते बताते है जो ठिक से उनको ना पढ पाये उस बात को मतलब दे जाते है जो कई बार गलत होते है
जीवन कि धारा को बदल कर हम जीना चाहते है चेहरे को हर बार समझकर आगे बढना चाहते है पर अक्सर लोग उसे गलत पढ लेते है
चेहरे को मतलब तो हम ही दुनिया मे दे जाते है जिसे परख कर समझ लेने कि दुनिया कि हर मोड पर चाहत होती है जिसे समझ लेने कि जरुरत होती है
पर अगर चेहरे के अंदर का एहसास हर मोड पर अलग होता है जो मतलब देकर आगे जाता है हमे बताता है जीवन मे नई किरण दे जाता है
जीवन को समझकर ही तो दुनिया को मतलब मिलता है जो जीवन मे ताकद बनकर बहता है जीवन को खुशियाँ और गम दे जाता है
पर चेहरा पढ लेना बहोत मुश्किल होता है जो हमे जीवन कि अलग चाहत दे जाता है चेहरा जीवन को मतलब देकर आगे ले जाता है
पर हर चेहरे के अंदर का विश्वास बहोत अलग होता है उसे समझ लेना हर बार बडा मुश्किल होता है जो जीवन को अलग मतलब देकर आगे जाता है
जीवन कि धारा को बदलकर कोई खयाल मे रोशनी लाता है उसे समझ लेना हर बार जरुरी होता है हमारी जीवन कि रोशनी होता है
चेहरा ही तो पढना जरुरी होता है जो हमे एहसास तो अलग देता है जीवन कि दिशाए भी बदलकर आगे चला जाता है ताकद देता है
चेहरे को पेहचान लेना ही जीवन कि सही उम्मीद होती है पर उसे ना पढ पाये उस से चेहरे को देखकर अनदेखा करे वह बेहतर होता है
क्योंकि बिना सोचे कुछ भी करना जीवन मे हर बार मुसीबत बन जाता है जीवन कि दिशाए परख लेने कि जरुरत है चेहरे कि जगह कोई और एहसास रोशनी दिखाता है

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