Wednesday 9 March 2016

कविता ५४८. जाने की राह

                                                                जाने की राह                                   
कुछ लोगों को गिराने की क्या जरूरत है हमे सिखाया गया है गिरे हुए लोगों को गिराया नहीं करते है हम तो वह है जो राह ढूँढ ही लेते है अपनी राह के लिए किसी को गिराया नहीं करते है
राह तो हमारी बनाता है वह खुदा जिस से जिन्दगी में हम कभी नहीं डरते है जीत तो उसकी होती है जो जीवन में अपनी हार से किसी पल भी डरा नहीं करते है
पत्थर तो अापने बिछाए है इतने हमारे राह में की अब हम काटों से भी डरा नहीं करते है चोट तो लगती है हर पल पर दर्द में रोने की फुरसत कहाँ हमारे जिन्दगी में आपकी मेहरबानियों से अब हम डरा नहीं करते है
अजी रास्तों पे पत्थर बिछाना आपका शौक था तो हम पे इल्जाम क्यूँ है हमारी छोटीसी चोट से डर गए हो के हमारी आवाज अभी आपके लिए एक मौत का पैगाम लग रही है
उस नाटक को बंद कर दो कही भगवान इस पे हस के न कह दे इस इन्सान को बनाया सिर्फ तेरे पहले इम्तिहान के लिए अभी हस लो इस पे ही आगे के इम्तिहान इतने आसान ना होगे आपके लिए
जीवन को समझ लेना जरूरत है हमारी क्योंकि दूसरों के आँसू मजाक नहीं होते है हमारे लिए जो खुद के जिम्मेदारिओं से भागे वह क्या कर सकेंगे ज़माने के लिए
अजी बात तो आपकी सुनकर लगता है पहली बार तूफ़ान की आवाज गूँजी है जिन्दगी में आपके लिए पर हमने तो सुना था आपने बहोत साहा है पर अल्फाज बताते है वह बात थी दिखाने के लिए
जो चोट खाते है उनके पास आँसू नही होते दिखावे के लिए जनाब यह तो बस शुरुआत है अभी कई शेर बाकी है लोगों को सुनाने के लिए आपकी सच्चाई दिखाने के लिए
सुना है आपकी तारीफे होती है पर लोगों का क्या है भगवान की मूरत को भी ठुकराते है कभी दौलत के लिए हमें उम्मीद है कम से कम आप उन्हें वह तो देंगे पर हम यह भी जानते है
जो भगवान को लुटे वह क्या देगा किसीको बहाने के लिए उस गिरे हुए के क्या पास जाना दूर से हम बना लेंगे अपनी राह आगे जाने के लिए उसका करम रहा तो जीवन में कई राहे मिल जायेगी जाने के लिए 

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