Tuesday 8 March 2016

कविता ५४६. कोई खयाल

                                                   कोई खयाल
किसी खयाल से क्यूँ डरना जब उसमे ही जीत होती है किसी खयाल से ही तो दुनिया कि रीत बनती है उसमे ही जीत होती है
हर खयाल को परख तो लेते है हम क्योंकि उनमे ही जीवन कि कोई धून दिखती है जीवन कि अधूरी कहानी ही तो दुनिया कि रीत बनती है
हर खयाल मे कई कोने होते है जिनमे दुनिया कि जीत दिखती है हर कोने को समझ लेते है तो हमे एक अलग मतलब कि ताकद दिखती है
जीवन मे कई किनारे तो होते है जिनमे जीवन कि कहानी बनती और बिघड जाती है पर जीवन मे आगे जाना ही दुनिया कि रीत होती है
किसी खयाल पे रुकने से दुनिया कहाँ बनती है जो जीवन को रोशनी दे जाती है वह कहानी दुनिया मे अक्सर कम ही बना करती है
जिसे हर साँस मे समझ ले वही दुनिया हमारी होती है जो समझ न पाये वह सिर्फ उलझन है उसमे कहाँ दुनिया कि कोई समझ होती है
जो खयाल सही बन जाये उसे समझ लेने मे ही तो दुनिया को मतलब दे पाने कि बाते मुमकिन होती है सही मकसद से ही तो दुनिया मे हमारी जीत होती है
खयालों के कई दायरों मे जीवन कि दास्तान बनती है उनसे ही जीवन कि कहानी हर बार शुरु हो जाती है जीवन मे खयालों से वही कहानी बनती है
खयालों कि सौगाद तो तभी तोहफा बनती है जब जीवन कि कहानी बनती है बिना खयालों को समझे दुनिया कहाँ बन पाती है
जो खयाल समझ मे आ जाये उनसे ही हमारी हस्ती बनती है जिन्हे नही समझ पाते उन्हे साथ रखने से किस्मत नही बदल सकती है

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