Monday 7 March 2016

कविता ५४४. अंदर का एहसास

                                              अंदर का एहसास
किसी सोच के अंदर एहसास जुदा होते है जिन्हे हम समझ ले वह किनारे जुदा होते है जिन्हे परख तो लेते है पर दुनिया के वह किस्से जुदा होते है
सोच के अंदर हम संभल कर आगे जाते है वह हिस्से जुदा होते है जो सोच से आगे बढ जाते है उस एहसास के किस्से अलग हर मोड पर होते है
मन को समझ लेने कि जरुरत हर बार सोच को बदल लेती है उस सोच कि कहानी हर बार जुदासी होती है उसकी निशानी जुदा लगती है
जब हम जीवन को समझ लेना चाहे तो जीवन मे हमारे एहसास अलग होते है जो सोच कि ताकद से जीवन को मतलब हर बार दे जाते है
सोच के अंदर जो एहसास दे उसे समझ लेने कि चाहत जुदा होती है हर सोच कि कहानी खुदके एहसास को बदल देने का किस्सा बता देती है
सोच के हर पेहलू को समझ लेना तो जीवन कि कहानी कुछ अलग बनती है सोच के पेहलू का हर हिस्सा हर बार कुछ नया होता है
हर सोच को जिन्दा रखने कि जरुरत से जीवन मे हमारे एहसास अलग होते है क्योंकि सोच को परख लेने कि जरुरत मे ही हर बार हम अपनी दुनिया जी लेते है
सोच के पेहलू हर बार बदलते रहते है सोच के बदलाव को हम कहाँ दुनिया मे समझ पाते है उनसे अलग अलग नतीजे हम हर बार जी लिया करते है
सोच को अलग अलग दिशाओं मे हम समझ लेते है उस सोच के अंदर कई किनारे हमे हर बार दिखते है जिन्हे हम समझना भुल जाते है
सोच को हम जीवन मे समज लेते है तो जीवन मे हम खुशियाँ हासिल किया करते है जीवन को समज लेते है तो बस तभी जब सोच को अच्छेसे समज लिया करते है

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