Friday 4 March 2016

कविता ५३८. मकसद के अंदर कि दुनिया

                                          मकसद के अंदर कि दुनिया
कुछ बाते कहनी अक्सर बाकी रह जाती है जो जीवन को अलग समझ और एहसास दे जाती है पर मकसद मे ही बात कि अहमियत छुपी रहती है
मकसद पर ही जीवन कि हर बाजी निर्भर होती है जो जीवन को अलग अलग मतलब दे जाती है बिना मकसद के बात कहाँ मतलब दे पाती है
मकसद के साथ ही तो दुनिया जिन्दा रहती है सही मकसद हो तो दुनिया को सतरंगी बनकर बहती है जो जीवन को उम्मीदे दे जाती है
मकसद के अंदर ही तो जीवन कि अहमियत छुपी रहती है जीवन मे मकसद के बिना कहाँ दुनिया आगे बढती है
दुनिया को समझ लेना मकसद को समझ लेने के बाद ही मुमकिन बात हो पाती है जिसे परख लेने कि हर बार हर मोड पर जरुरत होती है
मकसद के अंदर ही जीवन कि कहानी बनती है जो जीवन को हर बार आगे ले जाती है जीवन के दास्तान बनकर आगे बढती है
मकसद मे ही तो दुनिया जिन्दा रहती है जिसे समझ लेने कि हर बार जरुरत लगती है क्योंकि मकसद मे ही तो दुनिया जिन्दा होती है
जीवन कि हर ताकद मकसद से ही तो होती है जो जीवन को आगे ले जाती है जीवन कि कहानी मे ही हर बार होती है जो जीवन को मतलब दे जाती है
मकसद के अंदर ही जीवन कि सच्चाई बसती है जिसके साथ ही तो हमारी दुनिया बनती है मकसद के बाद ही तो सही बाते समझ आती है
मकसद को परख लेने पर ही हमारी दुनिया जिन्दा हो पाती है जो जीवन कि धारा हर बार बदल जाती है बिना मकसद समझे दुनिया बिना मतलब नजर आती है

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