Sunday 20 March 2016

कविता ५७१. एक बात के दो मतलब

                                                        एक बात के दो मतलब
सिर्फ एक बात होने से बात का मतलब एक नहीं होता है एक के मुँह से सही लगती है तो दुसरे के मुँह से वही गुनाह होता है बड़ी अजीब है यह दुनिया हर बात बदलती है
हथियार जवान के हाथ में हो तो सही पुलिस के हाथ में हो बात खूब लगती है पर वही चोर के हाथ में जाये तो कितनी आसानी से लोगों की दुनिया दो पल में उजड़ती है
जीवन की गाड़ी हर बार अलग मोड़ से चलती है कभी सही तो कभी गलत मोड़ पे जाकर अपनी दुनिया बदलती है जीवन की गाड़ी हर बार दिशा बदलती है
जीवन के अंदर अलग अलग सोच जब हमारी दुनिया बदलती है क्योंकि कभी सच्चाई के लिए तो कभी झूठ के लिए वही बात जीवन में कहनी पड़ती है
हमे जरूरत है उस बात को कहने की क्योंकि वही बात तो जीवन में मतलब देती रहती है जीवन की हर बात को अलग अलग दिशाओं में दुनिया समझती है
जिसे हम सीधी कहते है उसे दुनिया जाने क्यूँ टेढ़ी बनाकर समझ लेती है हर बात को तो मतलब से ही परखना पड़ता है क्योंकि मतलब से ही वह बनती है
जीवन की हर धारा को समझ लेने की जरूरत होती ही है अगर जीवन को समझे तो हर बात अलग अलग मतलब देकर ही बनती है
बाते को मतलब देनेवाली चीजे दुनिया को मतलब दे जाती है हमे समझ लेने से ही तो दुनिया जीवन को मकसद देती है जीवन को समझ लेने की हर बार जरूरत होती ही है
बात के अलग अलग मतलब जीवन को अलग एहसास दिलाते है जिनसे दुनिया बदलती है वही बात जो हमे जीवन दे वही बात किसी और के मुँह से मौत की सौगाद लगती है
अलग अलग बातें ही तो जीवन को मतलब देती है पर सच्चा मतलब तो वह बात देती है जो जीवन को एक बात हो कर भी अलग दिशा अलग बनाकर पेश करती है 

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