Monday 14 March 2016

कविता ५५९ रेत और पत्थर

                                                     रेत और पत्थर                              
रेत के महल बनाना और मिट जाना जीवन मे होता ही है रेत को समझाने से अच्छा है हम खुद ही समझ ले उनका टूँट जाना अच्छा ही है
क्योंकि रेत कि फिदरत होती है टूँट बिखर जाना है उसे समझ लेने तो हो सकता है पर उसे समझ लेना जरुरी होता है जो जीवन को मतलब दे जाता है
रेत तो फिसलती रहती है जिसे समझ लेना हर बार हम चाहते है पर कभी कभी रेत को परख लेना जरुरी हर मोड पर होता ही है
रेत को समझ लेना जीवन कि जरुरत होती है क्योंकि रेत को बदलना नामुमकिन बात ही होती है रेत जो हमारे जीवन को अलग एहसास देती है
जो महल मे बदल कर सपने जोड लेती है उसे समझ लेने कि जरुरत हर बार होती है क्योंकि वही रेत फिसल कर हाथों से छुट भी जाती है
रेत को समझ लेना जीवन कि जरुरत होती है जो हमे नया एहसास दे जाती है फिसल जाना ही तो रेत कि हर मोड कि जरुरत होती है
रेत अपनी जगह सही होती है नये महलों के लिए पुराने महल को मिटाना जरुरत होती है पर हमारी दुनिया वह बात कहाँ समझ पाती है
रेत को समझाने कि नही शायद हमे समझ लेने कि जरुरत होती है राह वही देने कि जरुरत होती है जो हमे नई सुबह दे कर जाती है
हाथ से फिसल जाना ही रेत कि आदत होती है उसे मजबूती कि जरुरत नही होती है मजबूती तो पत्थर फिदरत होती है
आखिर रेत से ही पत्थर बनते है और पत्थर से ही रेत बन पाती है दोनों कि कहानी अलग अलग ही होती है जो जीवन मे असर कर जाती है
पत्थर को रेत या रेत को पत्थर बनने कि जरुरत नही होती है क्योंकि जीवन मे अलग अलग मोड हर बार दिखा जाती है

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