Sunday 20 March 2016

कविता ५७०. दिन के अंदर कि सोच

                                               दिन के अंदर कि सोच
हर दिन एकसा नही होता है दिन तो हर बार अपना रंग बदलता है हमे रोशनी देता है और कभी कभी अँधेरा भी जीवन कि सच्चाई होता है
पर अलग सही सोच हो तो जीवन का हर दिन गुजर जाता है नई उम्मीदों के किनारे हमे हर बार मिलते है हमे आगे ले कर जाते है
जीवन कि धारा मे कई बार हम अपनी सोच को समझ लेना चाहते है पर अगर दिशा सही हो दोस्त सही हो तो दिन बदल कर भी बदल कहाँ पाते है
दिन तो अलग अलग मतलब हर मोड पर दिखा देते है जिन्हे समझ लेना हम जीवन कि जरुरत हम हर बार समझ लेते है सोच को अलग तरीके से समझते है
दिन के अंदर अलग अलग रंग हमे रोशनी दे जाते है जिनमे कुछ सही रंग भी होते ही है कुछ सही तो कुछ गलत रंग लेकर हम जीवन जी लेते है
जीवन कि धारा को कुछ अलग ढंग से हम समझ लेते है जिसमे हम जीवन कि खुशियाँ और गमों कि कहानी एकसी हर बार पाते रहते है
हर दिन कि बाते कहाँ एकसी रहती है जीवन कि कहानी हर पल बदलती रहती है जिसे नई शुरुआत हर बार हम देते है जिनके अंदर खुशियों को हम ढूँढ लेते है
दिन का बदलते रहना ही तो दुनिया कि अहम रीत होती है जीवन कि हर बाजी हमे समझ लेने कि जरुरत हर मोड पर हर मौके पर पडती है
हर बार दिन के अंदर अलग अलग किसम कि सोच हर बार छुपी रहती है जिसकी जीवन मे हर मोड पर चाहत होती है जीवन मे उसे समझ लेने कि जरुरत होती है
दिन के अंदर हर बार अलग एहसास कि दुनिया छुपी होती है जो हर बार हमारा जीवन बदलकर हमारी किस्मत बनती है और बिघाड कर जाती है
पर हर दिन को चाहे तो हि हमारी दुनिया रोशन बनती है क्योंकि कई दिन मिलाकर ही हमारी दुनिया बनती है जो जीवन को रोशनी दे जाती है


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