Tuesday 15 March 2016

कविता ५६०. बंजारे कि किस्मत

                                                       बंजारे कि किस्मत
हर बार दुनिया का रंग बदल देती है उसे एहसास नही होता है हम भी उस वक्त हम बदलते जा रहे है काश उस पल यही बात दुनिया समझ लेती
पर जीवन कि कहानी इतनी आसान नही होती है वह सीधी राहे हर बार नही देती है या फिर यह कह दे जिन्दगी समझ देती है पर समझदारी नही आती
दुनिया तो अपनी ही धून मे जीती है हमे कोसती रहती है अपनी जीत कि खुशियाँ मनाती रहती है यह नही कभी समझ पाती सिर्फ एक ही दुनिया नही होती
एक बंजारा मन जब दर्द पाता है अक्सर खुशियों कि तलाश मे कही दूर निकल जाता है दुनिया उसकी प्यास मे लोगों को तरसते देखना है चाहती
दुनिया हमे कई राहे देकर जाती है पर उन राहों को समझ लेने कि जरुरत हर बार हमे होती है पर हम कोई अलग राह चुन लेंगे यह दुनिया नही समझ पाती
जब आप इन्कार कर देते तो राह बंद हो जाती है पर दुनिया को लगता उनकी राहे हर पल जिन्दा रहती है जो उनको जीवन मे हर पल रोशनी देगी
दुनिया को कई रंगों के एहसास को समझ लेने कि आदत नही होती चोट दे कर अक्सर गलती भुला देने कि जीवन मे बडी बूरी आदत है होती
जब कोई दरवाजा बंद कर दे तो बंजारा कोई ना कोई घर ढूँढ ही लेता है दुनिया को लगता है बंजारे को घर ना मिल पायेगा पर बंजारे कि किस्मत वह उसे दे जाती है
दुनिया यह नही समझ पाती कि बंजारे कि किस्मत दुनिया नही उपरवाले की मर्जी करती है वही उसे कई बार उम्मीदों कि कश्ती है देती
बंजारे कि उम्मीद अक्सर हर बार उसे बदल देती है उसे बंजारा नही रखती पर जीवन मे दुनिया को उसे समझ लेने कि जरुरत हर बार नही लगती
पर जब कभी उसे उम्मीदे मिलती कई ओर दिशा मे उसकी किस्मत बनती है उस किस्मत पे रंज करना दुनिया अक्सर भुला नही पाती 

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