Monday 8 February 2016

कविता ४८८. लब्ज को समझ लेना

                                                        लब्ज को समझ लेना
हर लब्ज को समझ लेना जीवन की जरूरत होती है जिसे दुनिया हर बार हर मोड़ पर समझ लेती है सोच को परखे तो जीवन की धारा होती है
लब्ज के अंदर एहसास अलग अलग होते है जिन्हे समझ लेने की दुनिया में शुरुआत जब होती है तभी तो दुनिया नई सुबह हर बार देख पाती है
तरह तरह की बाते जो जीवन को अलग मतलब दे जाती है जिन्हे समझ लेने से जीवन की शुरुआत होती है हर बार अलग नजर पर सही लब्ज तो बस जीवन को बनाते है
जब जब हर बारी हर मोड़ पर हम जीवन को परख तो लेते है पर कभी कभी एक गलत लब्ज से हम अपनी दिशा बदलते है उनसे जीवन की शुरुआत अलग होती है
क्योंकि उन लब्जों से गलत चीजों की कहानी शुरू होती है जो हर बार आगे बढ़ने लगती है जीवन में क्या कतराना लब्जों से, जब हमारी दुनिया उन्ही से बनती है
जीवन की धारा जब आगे बढ़ती है जीवन की कहानी धीरे धीरे नई शुरुआत देने लगती है पर जब हम जीवन को समझ लेते है तो दुनिया बदलती है
खुशियाँ कुछ अलग और बिना मतलब की बनती है जो दुनिया बदल देती है जब हम आगे बढ़ते है तो दुनिया नई शुरुआत देती है नया एहसास दे कर आगे चलती है
लब्ज के अंदर दुनिया की मेहनत आगे जाती है पर गलत लब्जों पर कई दिन गवाने से दुनिया आगे बढ़ती है जो हमे समझा लेती है
लब्ज तो कई मतलब दे जाते है जिनमे दुनिया चमकती है जो एहसास तो देते है खुशियों का पर उनसे खुशियाँ असल में दूर निकल जाती है
जिस बात के मतलब अलग अलग निकल जाते है वह बात क्या खाक समझमें आती है बात हर बार बस वही सही होती है जो जीवन में एक मतलब देती है और लोगों को खुशियाँ देना सीखाती है 

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