Friday 12 February 2016

कविता ४९७. नदियाँ और रेत

                                                              नदियाँ और रेत                                              
नदियाँ के किनारे जीवन में एहसास अलग अलग होते है जिन्हे सुन लेनेसे जीवन को एहसास अलगसे होते है नदियाँ के आवाज से ही हम दुनिया को परख लेते है
नदियाँ में ही हम दुनिया के ठंडे पानी को छू लेने है पर क्या हम उस किनारे पर जीवन को परख लेते है जीवन को वह एहसास है जिसमे जी लेते है
पर सिर्फ पानी से नहीं रेत के एहसास से भी हम बहोत कुछ सिख लेते है हम जीवन के कई मोड़ को समझ लेते है तो कभी कभी अनदेखा एहसास तो जीवन को समझ लेते है
किनारा तो हमे परख लेता है और जीवन की धारा को भी हम हर बार बदल लेते है किनारे से पानी के अंदर पैर जो जाते है जीवन में बदलाव देते है
जीवन के अलग अलग हिस्से हर बार चलते रहते है कभी पानी और कभी रेत का बदलाव जीवन में अलग असर कर जाता है हम अलग राह समझ लेते है
नदी तो जब पाव को छू लेती है उसमे अलग एहसास हर बार देती है पर रेत का साथ बताता है की हमारी दुनिया बदलती रहती है जीवन की खुशियाँ बदलती रहती है
हर चीज को समझ लेना जरुरी होता है क्योंकि दुनिया के एहसास बदलते रहते है जीवन की धारा में दुनिया की सोच हर राह पर हम अक्सर समझ पाते है
जीवन को जब जब हम समझ लेते है नई शुरुआत और नये एहसास की धारा को बदलते देखते है जीवन तो हमे उम्मीदे देता है जीवन की शुरुआत हम अलग ढंग से करते है
हर बार एक अलग एहसास के संग हम जीते है और दुनिया में आगे बढ़ते है दुनिया के अलग अलग रंग तो हमे उम्मीदे देते है जिन्हे हम कहाँ समझ पाते है
किनारों की रेत हो या पानी का एहसास हो दोनों बदलाव को हम एक पल में ही जी लेते है दुनिया को अपने तरीके से हर बार समझ लेते है  

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