Sunday 17 January 2016

कविता ४४५. किनारे और समुंदर

                                                             किनारे और समुंदर
कई किनारे जीवन में उम्मीद की रोशनी हर बार  दे जाते है किनारे तो जीवन का हर बार सपना जिन्दा कर के देते है जीवन की हर धारा में उम्मीद होती है
किनारों पर जीवन की धारा हर बार हमें जीवन दे जाती है किनारों पर हमारी दुनिया तो बसती है पर समुंदर में उतर जाने की भी जीवन में हर बार जरूरत होती है
किनारों पर जो जीवन की कहानी बनती है उसे जीवन को समज लेने से ही उसकी निशानी बनती है पर समुंदर से ही जीवन की शुरुआत होती है
किनारे और समुंदर को परख लेने की जीवन को जरूरत होती है किनारे तो वह जीवन है जो हम रोज जीते है और समुंदर तो वह जंग है जो हम सच्चाई के लिए लढते है
किनारों पर रह कर हमारी जिन्दगी नहीं गुजर पाती है हमें उसे जीवन में आगे ले जाने की जरूरत हर बार मेहसूस होती है जो रोशनी देती है
किनारे और समुंदर को परख लेने की जीवन में हर बार जरूरत होती है क्योंकि सिर्फ सीधी राह से जिन्दगी नहीं गुजर पाती उसे मुश्किलों से लढने की जरूरत होती है
मुश्किलों से लढने की जीवन में हर बार कोई तो उम्मीद होती है वह समुंदर के अंदर अलग अलग एहसास देती है समुंदर में अलग सोच जिन्दा हर बार होती है
सच्चाई को जीवन में समज लेने की जरूरत हर बार होती है उसी लिए किनारों के साथ साथ समुंदर में भी उतर जाने की जीवन में हर बार जरूरत होती है
किनारों में दुनिया हर बार जिन्दा रहती है पर समुंदर के साथ झूंज लेने की जरूरत पड़ती है जीवन सिर्फ आसान चीज नहीं होती है जीवन में हर बार उम्मीद होती है
जब हमे समुंदर के कूदने की आदत होती है जो जीवन में हर बार रोशनी देती है क्योंकि सच्चाई की जीत हर बार हर मोड़ पर अहम लगती है 

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