Friday 8 January 2016

कविता ४२७. मन कि शीतलता

                                             मन कि शीतलता                    
आसमान मे कई बार तारों कि शीतल रोशनी जो दिखती है उन सितारों के अंदर नई शीतलता मिलती है आसमान मे हर रंग मे एहसास जुदा होता है
उस शीतलता मे ही जीवन को नया एहसास मिलता है पर तारे तो बस वही होते है पर रोशनी तो हर बार बदल जाती है जो जीवन के हर मोड पर मतलब अलग पाती है
शीतलता ही तो जीवन को प्यारी चादर देती है हर मोड को कोई अलग मतलब और मकसद दे जाती है शीतल चांदनी ही जीवन मे रोशनी लाती है वह उम्मीद बन कर आगे बढ जाती है
शीतलता ही अक्सर जीवन मे अहम नजर आती है क्योंकि मन को लगता है वही उम्मीद दे जाती है पर सच तो यह है कि शीतलता मन कि जीवन कि जरुरत हर बार होती है
आसमान कि शीतलता से नही मन कि शीतलता से जीवन मे रोशनी हर बार होती है जो जीवन को धीमे से उजाला देती है शीतलता ही जीवन कि अहम साँस होती है और मन के शांती से वह जीवन मे आती है
जीवन के हर कोने मे एक नई सुबह होती है जो जीवन को हर बार उम्मीद दे जाती है और रोशनी देती है मन अगर शांत हो तो जीवन मे खुशियाँ आती है
जीवन कि शीतलता जीवन को मतलब दे जाती है जीवन के हर कदम मे चाहे सूरज हो या चांद मन कि रोशनी उन्हे प्यारा बनाती है जिनके अंदर वह शीतलता होती है जो आगे ले जाती है
मन के भीतर कोई ताकद हो जो जीवन को मतलब दे जाती है वह अक्सर जीवन मे हर मोड पर अहम नजर आती है अगर मन मे अहम एहसास हो तो उसमे रोशनी नजर आती है
शीतलता ही जब मन मे होती है वह हमारे जीवन को रोशनी दे जाती है हमे हर बार जो उम्मीद दे जाती है वही सोच शीतलता मन मे लाती है अगर गुस्सा हमारी आग है तो शीतलता पानी है
दोनों हिस्सों से लिखी हुई इस जीवन कि कहानी है जीवन मे अगर परख लेते है तो शीतलता देती है वह एहसास जो जीवन मे हर पल लगता बडा ही सुहाना है

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