Sunday 24 January 2016

कविता ४५८. हवा के संग

                                                                      हवा के संग
हवा के साथ साथ चलना जरूरी लगता है उसको चुपके से परख लेना भी जरुरी लगता है जीवन में जो जरुरी है वह हवाए है इसीलिए तो उन्हें अपने हिसाब से बदलने के लिए अपनी जगह को बदलना जरूरी लगता है
जहाँ हो खड़े वहाँ से हर बार सही दिशा नहीं मिलती है वही पर खड़ा रहना जीवन में सही नहीं होता मुड़कर भी कभी कभी इधर उधर देखना जरुरी होता है एक ही जगह से जीवन नहीं समज पाता है
हम घूमते रहते है उन हवाओं के सहारे उन हवाओं में ही तो हमें अपने किनारे दिखते है हवा को समज कर चलते है हम पर सच कहे तो हम बस अपने दम पर चलते है हवा तो छू लेती है
हवा के एहसास को हर पल हम समज लेते है जीवन को जो हवाए छू लेती है उस हवा को हम हलकेसे जीवन में समज लेते है उसे हर पल हम छू लेना चाहते है हवा को परखते रहते है
हवा तो जीवन को नया एहसास हर बार देती है  हवा में असर तो कई तरह के होते है हवा में जो बात है उसे हर बार हम समझ लेना चाहते है हवा को हर मोड़ पर समझ लेना चाहते है
हवा में जिन्दा रहकर हर बार हम जीवन में आगे बढ़ना चाहते है हवा को समझ लेने की चाहत हर बार हमे कुछ नई बात सिखाती है जो जीवन को हर बार आगे ले जाती है
हवा तो हिलती रहती है हवा के संग जीवन की धारा भी बदलती जाती है हवाओ के संग जीवन का एहसास जिन्दगी बदलती जाती है हवा सही हो उसके संग रोशनी आती है
हवा में मासूम एहसास की खुशबू आगे ले जाती है हवा के संग साँस जीवन को मतलब दे जाती है हवा ही तो वह चीज है जो जीवन को रोशनी हर बार दे जाती है उम्मीदों की सौगद नजर आती है
हवा ही तो जीवन की धारा तो मतलब दे जाती है जो जीवन के अंदर रोशनी का एहसास नया लाती है हवा ही हमें साँसे दे जाती है मन में खुशियाँ लाती है
हवा को समज लेने की जरूरत हर बार नजर आती है हर मोड़ पर होती है जीवन में रोशनी दे जाती है एहसास तो जीवन को मतलब दे जाते है 

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