Monday 11 January 2016

कविता ४३३. दो किनारों की एक कहानी

                                                           दो किनारों की एक कहानी 
कुछ सही और कुछ गलत जीवन में अलग अलग छोर तो होते ही है दो राहों पर अक्सर उन्हें समज लेने की उम्मीद हम जीवन में पाते ही है
हर छोर पर कुछ ना कुछ एहसास हर बार दिख जाता है जिसे समज लेने के लिए जीवन अलग रंग दिखाता है जीवन में हमेशा दो छोर तो होते ही है 
अलग अलग एहसास जीवन में उम्मीदे देते है पर अलग अलग छोर पर जीवन गुजार लेने की हर बार जरूरत नहीं होती है कभी सही छोर पर ही जिन्दगी गुजर जाती है 
पर मुश्किल तो तब होती है जब जीवन की शुरुआत  किसी गलत छोर पर होती है क्योंकि तब मुश्किल बड़ी होती है क्योंकि हमे पार करनी एक नदी होती है 
पर ध्यान से देखो तो कई बार किसी दूर किनारे पे  सही गलत के किनारे मिल जाते है और यही तो जीवन की मुश्किल होती है जो जीवन में किनारे दे जाती है 
किनारों पर जीवन की दिशा बनती है क्योंकि किनारों पर ही जीवन की दुनिया बसती है किनारों के अंदर अलग ख़याल होते है जीवन पर असर कर जाते है 
हर किनारे पर दुनिया बसती है जो जीवन में खुशियाँ  देती है अगर हम हर छोर को समज ले तो ही जीवन में नई शुरुआत होती है 
हर किनारे में सही गलत बस तभी रहते है जब किनारे नहीं मिलते है पर अगर वह मिल जाये तो जीवन की धारा बदल जाती है जीवन की कहानी अलग नजर आती है 
क्योंकि जब किनारे मिलते है जीवन में समज लेने की जरूरत होती है पुरे किनारे को सही बनाने की जरूरत हर बार हर मोड़ पर अक्सर होती है 
किनारे अलग हो तो हम रह भी लेते आराम से पर जब किनारे मिल जाये तो जीवन में लढने की जरूरत होती है पूरा किनारा बदल देने की जीवन में जरूरत होती है 

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