Monday 11 January 2016

कविता ४३२. सोच को समज लेने की फुरसत

                                                          सोच को समज लेने की फुरसत
जब कुछ सोचा हमने हमारी सोच बदल जाती है क्योंकि जीवन की हर बात में हमारी दुनिया बदल जाती है सोच तो अक्सर जीवन को दिशा अलग देती है
उस सोच को परख लेते है तो जीवन की दिशा बदल जाती है हर सोच के भीतर हमारे ख़याल अलग अलग होते है जो जीवन को राह अलग दिखाते है
पर सोच को समज लेते है तो उस सोच के अंदर खयाल अलग दिखते है पर कभी कभी जीवन में एक ऐसी दिशा भी दिखती है जिसे समज लेने से जीवन की शुरुआत अलग होती है
पर कभी कभी जीवन में सोच अलग जिन्दा होती है  पर कभी कभी जीवन में सोच भी बदल सी जाती है जीवन के अंदर वह ख़याल अलग देती है
जीवन को जिन्दा कर जाए वह एहसास हमेशा वह देती रहती है जीवन के हर धारा में हमारी सोच अलग होती है जिसे परख लेने की जरूरत तो हर बार होती है
जीवन की हर धारा को समज लेने फुरसत नहीं मिलती है क्योंकि सोच ही जीवन पर अलग अलग असर हर बार कर देती है जिसे समज लेने की जरूरत होती है
सोच को हर पल समज लेना आसान नहीं होता है क्योंकि लोग अपनी सोच अक्सर छुपा लेते है जीवन में उसे समज लेना आसान नहीं होता है
सोच को समज लेने की हर मोड़ पर जरूरत अहम होती है जो जीवन की हर धारा को रोशनी हर बार देती है उस रोशनी को परख लेने की समज जरुरी होती है
सोच ही जीवन को हर मोड़ पर अलग एहसास देती है सोच से ही जीवन की शुरुआत हर बार होती है सोच में जीवन की हर धारा बहती रहती है
पर जीवन के इन्सान की सोच समज लेनी मुश्किल रहती है क्योंकि जीवन में काम करते समय ख़यालो को समज लेने की जीवन में फुरसत नहीं मिलती है 

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