Friday 25 December 2015

कविता ३९८. दो किनारों कि एक सोच

                                          दो किनारों कि एक सोच
जब एक किनारे से बढकर हम दुजे को छू जाते है हम सोच लेते है उन किनारों मे वह दुनिया है जिसे हम हासील कर जाते है किनारे तो हर बार किस्मत बनाते है
किनारों को परख लेना हर बार हम कहाँ समज पाते है किनारे तो वह होते है जिन्हे हम समज लेना चाहते है किनारों कि दुनिया एक दुसरे से जुडी होती है पर हम उसे समज कहाँ पाते है
किनारे तो जीवन को मतलब दे जाते है जिन्हे अलग अलग रखने मे ही हर सही दिशा मेहसूस करते है किनारे अगर जुड जाये तो उम्मीद नई बनती है पर उन्हे समज लेने से दुनिया डरती है
एक किनारा एक सोच है जिसे समज लेते है हम पर सही रंग तो जीवन मे तब आता है जब हम दो किनारे जोड कर सोच बनाते है खुशियाँ लाने के लिए पर जाने क्यूँ हम डर भी जाते है
किनारे तो दो अलग अलग सोच ले आते है वह हर बार जीवन मे जरुरी होते है वह हर बार अलग किसम कि सोच बनाते है वह जीवन को हर बार समज लेना चाहते है
दो तरह कि सोच को मिला कर अलग तिसरी उम्मीद बनाते है दो किनारों के साथ भी जीवन मे अलग सोच हर मोड पर पैदा होती है दोनों सोच को जीवन मे मिलकर नई सोच पैदा होती है
अलग सोच ही जीवन को मतलब दे जाती है दो खयाल मिल कर अलग एहसास बनते है दो किनारे जो हमे अलग बनाते है उन दो के अंदर अलग नये एहसास हर बार जीवन मे रोशनी देते है
अलग अलग किनारे जीवन को मतलब अलग हर बार देते है पर दो किनारों को मिलाने से जीवन कि अलग दुनिया बनती है जो जीवन को नई उम्मीद देती है
अलग सोच जो जीवन को मतलब दे जाती है वही तो जीवन कि साँस बनती है अलग सोच के अंदर मजबूत तरह कि ताकद हर बार छुपी हुई होती है
सही सोच को परख लो तो जीवन मे उसे सही मोड पर ले जाने वह जीवन मे उजाला देती है सोच को सही तरीके से ले जाने कि कोशिश ही तो हमारी जिन्दगी होती है

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