Tuesday 22 December 2015

कविता ३९३. कुदरत के अंदर

                                   कुदरत के अंदर
कुदरत के अंदर जीवन को हर बार अलग अलग तरह कि सीख मिलती है जो कुदरत को हर बार आगे ले जाती है हमारे जीवन को अलग मकसद देती है
कुदरत के अंदर जो पेहचान होती है वह जीवन को हर बार एक नई बात बताती है पर कभी कभी कुदरत पुरानी बात भी दोहराती है जीवन को अलग मकसद दे जाती है
कुदरत कि तो बस एक आदत होती है वह हर मोड पर इन्सान को अपना साथी तो बनाना चाहती है पर कई बार यही बात मुश्किल पाती है कुदरत तो जीवन कि धारा को अलग दिशा दिखाती है
कुदरत ही सबकुछ होती है वही तो जीवन को मतलब दे जाती है कुदरत को परख ले तो दुनिया अलग राग बताती है कुदरत के अंदर ही दुनिया सपने छुपाती है
कुदरत तो हर बार दुनिया कि ताकद होती है जो दुनिया को अलग एहसास हर बार दे जाती है कुदरत को समज ले तो दुनिया सुंदर बन जाती है कुदरत ही हमारी दुनिया बनाती है
कुदरत मे ही तो जीवन कि रोशनी हर बार होती है कुदरत मे तो जीवन कि सोच दिखती है कुदरत तो हर बार रंगों कि बारात दिखाती है कुदरत तो जीवन का अलग एहसास दिखाती है
कुदरत को समज ले तो जीवन मे अलग शुरुआत होती है कुदरत मे हर मोड पर दुनिया कुछ अलग ही दिखती है जो जीवन मे हर बार मतलब दे जाती है
कुदरत कि धारा तो जीवन को अलग सोच दिखाती है वह हर बार जीवन को अलग शुरुआत दे जाती है कुदरत को तो हर बार अलग राह मिलती है
कुदरत को समज लेना हर बार जरुरी होता है कुदरत को हर छोर पर कुछ तो अलग मिलता है कुदरत के अंदर हर बार अलग आग जिन्दा हो जाती है
कुदरत तो हर बार रोशनी दे जाती है कुदरत तो जीवन को मतलब हर बार देती है कुदरत को समज लो तो ही अपने जीवन मे सही किसम कि खुशियाँ हर बार मिलती रहती है

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