Monday 21 December 2015

कविता ३९१. बात को कहना

                                                              बात को कहना
कहने को तो हर बात बाकि रह जाती है जीवन को समज ले तो जीवन को हर बार एहसास दे जाती है कहना तो हर बार आसान होता है पर बिन कहे बात कहाँ किसी को समज नही आती है
कह तो देते है हम पर बात छुपी हुई हर बार नजर आती है जब हम कहते है कई बाते जीवन मे छुपी हुई रह जाती है जीवन कि धारा कहाँ हमे समज आती है
जब जब हम सोच लेते है दुनिया हर बार बदल जाती है कहते है हम कई बाते पर कोई बात छुपी हुई नजर आती है जिसे परख तो लेते है हम पर मतलब तो हर बार बदल जाते है
कहते तो रहते है हम पर जीवन कि कश्ती जस्बात अलग लाती है जिसे समज पाते है हम तो जीवन कि कही बात कुछ तो समज मे आती है उम्मीद दे जाती है
कहने से जीवन मे जस्बात तो पैदा होते है पर कहना हर बार आसान नही होता है कहने से बाते आसान हर बार नही होती है जब बात जीवन मे आसानी से समज नही आती है
कहते तो हम रहते है पर जीवन कि राहे सीधे तरीके से जीवन मे रोशनी हर बार उम्मीदे तो हर बार जीवन तो देती है जीवन में कुछ तो असर होता है
कहते तो हम रहते है कई बातों को पर सवाल तो यह है कितनी बार हम सच्चाई कबूल करते है जीवन तो हम जीते है पर सच्चाई से डरते है
कहना तो आसान होता है पर कई बार हम उसी सच से मुकर जाते है जीवन में हर अलग अलग रंगों को कहा कबूल कर पाते है
कहना तो आसान है पर जीवन को कब हम समज पाते है कही बातों को हम हर बार हर मोड़ पर समज लेना चाहते है कहते तो हम है
पर उसे कहा समज लेते है जीवन में फुरसत का मतलब हर बार असर करता है कहना हर बार जरुरी होता है पर कही बात को समज लेना ज्यादा जरुरी होता है 

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