Monday 21 December 2015

कविता ३९०. चंदा और सूरज

                                    चंदा और सूरज
चाँद कि रोशनी जीवन मे अलग एहसास देती है उसकी शीतलता से ही रात कि शुरुआत होती है मन को वह छू कर अलग एहसास देती है जीवन मे अँधेरे मे रोशनी हर बार जिन्दा होती है
जीवन मे दिन के अंदर रोशनी सूरज दे जाता है पर जैसे चंदा को देख सके सूरज वैसे ही जीवन मे कभी दिख नही पाता तो यह हम पर है कि हमे क्या प्यारा लगता है
चंदा और सूरज एक ही तरीके से समज नही आता है दोनो तो होते ही है जीवन मे पर हर कोई वही चीज पसंद नही कर पाता है किसी को चंदा तो किसी को सूरज पसंद आता है
जीवन कि हर धारा का मतलब तो हर बार जीवन को रोशनी दे जाता है चंदा और सूरज दोनों के अंदर अलग एहसास जीवन मे नजर आते है जो रोशनी दे जाते है
पर मन के अंदर कोई ना कोई पसंद हर बार होती है जीवन के अंदर अनमोल तो वह ताकद होती है जो जीवन मे हमे आगे ले जाती है जीवन मे अंदर अलग एहसास होता है
चंदा और सूरज दोनों के अंदर अलग ताकद होती है मन कि धारा उम्मीद देती है सूरज से ज्यादा हमे अक्सर चंदा भाता है क्योंकि वह जीवन मे दिख तो पाता है
चंदा के अंदर खुबसूरत शीतल एहसास जीवन को मतलब दे जाता है सूरज की ताकद जो हमे जला देती है उसके अंदर उम्मीद तो हर बार जिन्दा होती है
चंदा के शीतल एहसास मे कुछ तो उम्मीद जीवन को मिलती है वह तो हमे काफी लगती है जीवन को परख लेने पर अक्सर उम्मीद जिन्दा होती है
चंदा और सूरज दोनों मे अलग एहसास जो जीवन को मतलब हर बार दे जाते है पर हर बार जीवन मे अलग एहसास मतलब दे जाते है उनमे अक्सर ताकद हम पाते है
चंदा और सूरज दोनों ही हमारी जरुरत होते है पर फिर भी हम उन दोनों मे से कुछ तो जीवन कि राहों मे चुन लेते है और उस हिसाब से हम अपनी दुनिया पाते है

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