Wednesday 2 December 2015

कविता ३५२. अलग अलग किस्से

                                                              अलग अलग किस्से
कुछ बार जो जीवन की बातों के किस्से अलग अलग बन जाते है जीवन के अंदर नई सोच से ही किस्से बन जाते है किस्सों के अंदर मतलब अलग होते है
हर किस्सों में जीवन का मतलब हर बार हम समज जाते है पर कभी अनजाने किस्से भी जीवन को अर्थ दे जाते है जिसे जीवन कि हर धारा बन जाते है
किस्से तो जीवन के हर मोड़ को समज लेना हर बार चाहते है जीवन को हर मोड़ पर समज लेना हर बार जीवन को मतलब तो देता है
पर हर किस्सा कहाँ हमें आसानी से समज में आता है जीवन के हर मोड़ पर फिर चलने का मजा जो हम समजे तो ही जीवन को समज लेने का मजा हम समझते है
जीवन के हर हिस्सों में कुछ सोच तो ऐसी होती है जो जीवन को हर बारी रोशनी दे जाती है अगर जीवन को परखे तो हर पल में उम्मीद होती है
किस्से तो वह बनते है जिनमें दुनिया की तसबीर होती है किस्से तो वह बनते है जिनमें दुनिया जिन्दा होती है जब जब हर मोड़ पर कोई सोच होती है
किस्से के हर कदम में अलग शुरुआत होती है किस्सों के हर हिस्सों में ही तो दुनिया बनती है जिन्हे समज लेने की जीवन को जरूरत होती है
हर किस्से के अंदर एक अलग मोड़ दिखता है जिसे समज लेना जरुरी होता है जीवन को समज लेने की हर बार जरूरत होती है
किस्सों में हर एक एहसास से ही दुनिया बनती है जिसे समज ले उस सोच में ही खुशियाँ होती है पर उस सोच के अंदर कहाँ हमारी दुनिया जिन्दा होती है
इसलिए तो कभी किस्से भी बनते है जिनके सहारे जीवन की खुशियाँ हर बार हर मोड़ पर हमारी दुनिया को जिन्दा रख जाती है 

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