Monday 23 November 2015

कविता ३३४. गलत के खिलाफ कहना

                                                           गलत के खिलाफ कहना
चाहते है जो जीवन मे उसे समज कहाँ हम पाते है जो दिखता है उसके आगे पीछे ही घूमते रह जाते है जीवन कि हर सोच को हम हर बार परख लेना चाहते है
पर फिर भी कई बार मन को मार कर दूसरों कि कही दोहराते है जीवन मे कई बार यह गलती भी कर जाते है साथ नहीं देते ग़लत का पर जीवन मे चुप रह जाते है
कभी कभी ग़लत को ग़लत ना कहना जीवन मे अलग एहसास दिखाता है उसे ग़लत का साथी समज लिया जाता है उस पल मजबूर लब्जों को खोलना ही सही होता है
थोड़ासा नुकसान उठा लो जीवन भर रोने से वही बेहतर होता है ग़लत को समज लेने से ही सही कि शुरुआत होती है ग़लत पर चुप रहना माना कि कुछ पल कि मजबूरी होती है
पर मन से सोचे तो वह जंग ज़रूरी होती है कुछ पल चुप भी रह जाये तो भी जीवन की सच्चाई हमे आगे तो कहनी होती है कुछ पल के बाद तो उलझन सुलझ जाती है
जीवन कि हर धारा मे नई उम्मीद होती है जो हमे हर पल आगे ले जाती है जीवन मे जब मुश्किल हट जाये तो सच्चाई को समज लेने कि ज़रूरत होती है
ग़लत के ख़िलाफ़ जाने कि अहमियत होती है जो सिर्फ़ ग़लत पर चुप रह जाये उस से क्या उम्मीदें होती है? जो कभी तो आवाज़ उठाए उसकी जीवन मे ज़रूरत होती है
शायद कुछ पल मजबूरीसे दूर रहे सही इन्सान जिन्दगी भर मजबूर नहीं होता है कुछ पल सच से दूर सही जीवन भर दूर नहीं रहता है जो जीवन को समज लेना ज़रूरी होता है
गलत के अंदर अलग सोच का एहसास होता है गलत सोच को बदल लेना जरुरी होता है उसकी खिलाफत करना भी जरुरी होता है
जीवन के अंदर अलग एहसास होता है जो जीवन को अलग सोच देता है गलत सोच को हर पल समज और बदल लेना जरुरी होता है उसके लिए देर से सही गलत के खिलाफ कहना जरुरी होता है 

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