Monday 9 November 2015

कविता ३०७. आप और तुम

                                                            आप और तुम
कभी लगता है तुम पास हो जीवन का एहसास हो जीवन मे जो आगे ले जाते है वह जीवन को रोशनी दे जाते है वही तुम जब आप मे बदल जाता है बडा अजीब सवाल बन जाता है
क्या उस बात से समजे जिनमे खुशियाँ होती है पर किसी को कहने दोस्ती तो कभी दूरियाँ बनती है हम नही समज पाते है कि उन लब्जों मे क्यूँ फँसे हुए लोग है
जब के जीवन के अंदर नई सोच है मिलती हमे उसकी जरुरत हर बार होती है वह जीवन मे उजाला और रोशनी देती है हर बार जीवन मे खुशियों कि शुरुआत होती है
पर सोच से ही तो दुनिया जीवन को समज लेती है किसी आप में दोस्ती की पुकार होती है और कभी कभी तुम भी पराया बनाती है
आप कहो या तुम कहो जरुरी बात तो मन का एहसास होती है जो अदब से कियी जाये वह बात सही एहसास देती है
जबान से गलती हो तो उसे बदल दी जाती है पर मन की कलक ही जीवन की सबसे बड़ी मुश्किल कहलाती है जीवन में सही सोच अहम एहसास देती है
हर गलत और सही अल्फाज को अलग एहसास देती है जीवन की जो राह सही दिशा देती है वही तो जीवन को बनाती है
जीवन में अलग सोच जो जीवन को रोशनी देती है वही जीवन में खुशियाँ दे जाती है उस एहसास में जिसमे दुनिया रहती है
वह एहसास बातों को नई सोच देता है एहसास देता है दुनिया को समज लेने की नई सोच देता है गलत लब्ज बदल जाते है
पर सोच नहीं बदल पाती है दुनिया की राह पर आप और तुम से कभी कभी फर्क नहीं पड़ता जब आवाज में मोहोब्बत और पुकार में अदब होती है 

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