Thursday 26 November 2015

कविता ३४०. मेहनत से आगे जाना

                                             मेहनत से आगे जाना
हम एक बात नहीं समज पाते कि लोग सच से इतना दूर क्यूँ रहना चाहते है अपने ज़िम्मेदारी से कतराकर हमे कुछ भी नहीं मिलता फिर भी हम दूर भागने कि कोशिश मे रहते है
जीने के हर मोड़ पर कुछ तो समज लेना चाहते है जीवन के हर कदम को नई सोच तो हम दे जाते है पर फिर भी जब मेहनत से हमारा सामना हो जाता है जाने क्यूँ लोग पीछे मुड़ जाते है
बिना मेहनत के जीवन मे कोई सुबह तो नहीं होती है जीवन के हर पल मे जीवन कि रोशनी हर बार है छुपी होती पर जाने क्यूँ जीवन मे जब मेहनत कि बात आती है लोग नाराज़ हो जाते है
एक जगह पर बैठकर रोशनी तो नहीं मिलती कभी मेहनत फलती है तो कभी दुनिया मे नहीं सफल होती पर हर कदम तो लोग आगे बढ़ना ही नहीं चाहते है
जाने क्यूँ वह यह चाहते है कि जीवन मे हर बात बिना मेहनत कि सुलझ जाती हो जीवन के हर मोड़ को वह खुद से जीना नहीं चाहते जीवन मे उम्मीदों के संग आगे चलना नहीं चाहते है
वह रुकना चाहते है और मन मे यह सोच रखना चाहते है जो जीवन को रोशनी दे जाती है उस सोच से आगे चलना चाहते है मेहनत से ज़्यादा दूसरे के मदत से चलना चाहते है
कुछ झूठी उम्मीदें देकर उसी बात को सच समज लेते है उनके कहने पर अपनी मेहनत छोड़ उनके भरोसे बैठना चाहते है जीवन कि हर धारा को आसानी से पार करना चाहते है
हर कदम पर हम जीवन कि मेहनत से दूर नहीं रह सकते क्योंकि हम जीवन को समज लेना चाहते है पर लोग अक्सर सोचते है बहोत मेहनत हो चुकी है वह बिना मेहनत के आगे बढ़ना चाहते है
जीवन मे ऐसी कोई राह नहीं जो बिना मेहनत के आगे ले जाती हो जीवन मे कोई ऐसी चाह नहीं जो बिना मेहनत के मिल पाती हो पर कुछ लोग कही सुनी मे आकर मेहनत भुला देते है
दूसरे कि कोई भी गलती इतनी बड़ी नहीं होती कि अपनी किस्मत बना जाए दूसरे कि कोई ताकद इतनी बड़ी नहीं हो पाती जो हमारा जीवन आसान कर जाए बस अपने कोशिश से ही अपनी उम्मीदें होती है



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