Friday 27 November 2015

कविता ३४३. दूसरे की बाजी

                                                                 दूसरे की बाजी
हर बाज़ी मे हार या जीत नहीं होती है कुछ बार जीवन कि बाज़ी सिर्फ़ मज़ा देती है हर बार बाज़ी को समज लेने कि ज़रूरत नहीं होती कभी कभी बाज़ी बिन खेले ही समज ली जाती है
हर बाज़ी जीवन मे मजधार नहीं बनती है उस बाज़ी के अंदर जीवन कि शुरुआत होती है बाज़ी जो जीवन को नया एहसास  दे जाती है उसे समज लेने कि ज़रूरत हर बार होती है
बाज़ी जो जीवन को मतलब दे जाती है उसे हर बार हमे खेल लेने कि ज़रूरत नहीं होती बाज़ी को खेलते देखकर ही कभी कभी जीवन को समज लिया जाता है
बाज़ी का एहसास जो हमे रोशनी देता है उसे परख लेने पर ही जीवन अपना रंग दिखाता है बाज़ी तो वह चीज़ है जिसमें जीना या ना जीना समजने के परे हर बार हो जाता है
बाज़ी को हर पल हम नहीं खेल पाते कभी कभी कोई उसे समजा कर जीवन का मतलब बिन खेले ही समजा लेता है जीवन कि हर बाज़ी मे एहसास अलग नज़र आता है
बाज़ी को परख लेना अहम होता है दूसरा कोई उसे जो खेले उसका मतलब हर बार अलग नहीं होता है बाज़ी के अंदर अलग सोच जीवन पर असर कर जाती है
बाजी के अंदर जो मतलब होता है क्योंकि बाजी जब कोई और खेलता है तब भी कभी कभी हम उस बाजी का हिस्सा बन जाते है
बाजी में हर मोड़ पर कोई तो अलग एहसास होता है हर सोच के अंदर नया असर ले आती है जो जीवन को रोशनी दे जाता है जीवन की बाजी देख कर ही कभी कभी जीवन पर सही मतलब मिलता है
बाजी में सही असर कभी कभी बस उसे देखकर बनता है पर बाजी दूसरे को आगे बढ़ते देख कर समज लेना जरुरी होता है
बाजी को देख कर जीवन में अलग सोच जिन्दा हो जाती है जो जीवन में नई सोच में अलग किसम का एहसास हर बार मतलब दे जाता है 

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