Saturday 14 November 2015

कविता ३१६. आवाज

                                                 आवाज
जब छुप के कोई परिंदा छत पर से निकल जाता है छोटीसी आहट मे ही मन मे अलग सोच दे जाता है जब कोई इन्सान कुछ नही कहता आँखों से ही बात अधूरी कह जाता है
जीवन को समज लेना कभी कभी उम्मीद दे जाता है परिंदों कि नाजूक आवाज मन को छू जाती है उस आवाज से ही तो दुनिया एहसास नया लाती है
पर जब किसी इन्सानको दर्द सुनाती है  वह आवाज जीवन को समज अलग ही दे जाती है परिंदो के दर्द को इन्सान न समजे पर इन्सानों के दर्द को तो समजे यह उम्मीद हो जाती है
पर कभी कभी आवाज कुछ न असर कर पाती है वह कमजोर लगने लगती है पर मन से पूछ लो तो वह कहता है वक्त दो वह आवाज मजबूत नजर आती है
आवाज तो जीवन को समज लेना उसे महसूस करने कि जरुरत पैदा कर जाती है आवाज तो जीवन को अलग एहसास दे जाती है आवाज ही हमेशा अहम नजर आती है
आवाज के अंदर जीवन को समज लेना जरुरी होता है आवाज के अंदर अलग सोच होती है जीवन को आवाज ही मतलब देती है पर जब जब हमे हमारी आवाज कमजोर लगती है
आवाज मे जीवन को समज लेना जरुरी होता है आवाज के भीतर नई सोच होती है कभी कभी जो जीवन को अलग सोच दे जाती है जीवन को हर बार अलग समज मिलती है
आवाज के साथ मजबूत अंदाज कि जरुरत जीवन मे होती है आवाज कि ताकद तभी बनती है जब जीवन कि गाडी सही अंदाज मे चलती है जीवन को समज लेना आवाज कि जरुरत है
अंदाज सही हो तो हर आवाज खुबसूरत है मजबूती उसकी चट्टानो सी होती है जो जीवन मे हर सोच को चीर के जाती है आवाज कमजोर लगे तो अंदाज बदल लेना होता है
सही अंदाज मे ही तो हर बार जीवन हमे सारी उम्मीदे देता है सही अंदाज को अपना लो तो जीवन को नई ताकद मिलती है जो जीवन को हर बार नई उम्मीद और ताकद मिलती है

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